15 दिसंबर, 2016
यूँ तो जब से मोदी जी की सरकार केंद्र में बनी है, किसी न किसी नेता और सांसद के बेतुके बयान आते ही रहे हैं। लेकिन किसी मंत्री ने कभी अपना आत्मसंयम खोया हो, ऐसा सुनने को नहीं मिला था। हमारे गृह राज्यमंत्री, किरण रिजिजू जी ने ये कमी भी पूरी कर दी है। जब इंडियन एक्सप्रेस में उनके बारे में खबर छपी, तो उनकी प्रतिक्रिया थी " जो ये न्यूज़ प्लांट कर रहे हैं न, हमारे वहाँ आएंगे तो सब जूते खाएंगे "। ये किसी असभ्य, अनपढ़, गँवार के बोल नहीं बल्कि एक मंत्री के शब्द हैं।
क्या इस तरह के शब्दों के प्रयोग से बच नहीं सकते थे मंत्री जी ? क्या हमारी भाषा में गुस्सा और आक्रोश व्यक्त करने के लिए सभ्य श्रेणी के शब्द नहीं हैं जिसका प्रयोग मंत्री जी कर सकते थे ? किरण रिजिजू जी उस विभाग में राज्यमंत्री हैं जिसकी जिम्मेदारी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की है। अगर उनको लगता था कि कुछ गलत हुआ है तो अपने विभाग के अधिकारियों के समक्ष ही शिकायत दर्ज करा सकते थे। निष्पक्ष जाँच होती तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता।
लेकिन सत्ता का नशा तो इस कदर सर चढ़ कर बोल रहा है कि मंत्री जी सीधे अपनी जनता को जूता खिलाने की बात करने लगे। कोई आरोपी या फिर अपराधी और भ्रष्टाचारी भी देश की जनता का हिस्सा ही होता है। जिस पद को सुशोभित कर रहे हैं किरण रिजिजू जी, उस पद पर आसीन व्यक्ति से शब्दों की सौम्यता और सभ्यता की उम्मीद की जाती है। इस तरह के बयान से मोदी सरकार की गरिमा कम ही हो रही है। किसी मंत्री के मुख से ऐसे बोल सामंती और तानाशाही सोच को ही उजागर करता है।
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