आज सुबह ही सुबह बहुजन समाज पार्टी के भ्रष्टाचार के बारे में सुनने को मिला। लगभग सभी अख़बारों के मुख्य पृष्ठ पर यह खबर प्रमुखता से छपी थी कि बसपा के एक बैंक खाते में नोटबंदी के बाद से अभी तक कुल 104 करोड़ रुपये जमा किये गए। खबर नई है, लेकिन चौंकाने वाली बिलकुल नहीं है। भारतीय राजनीति में हर प्रमुख राजनीतिक पार्टी के पास करोड़ो रुपये हैं और यह किसी से छिपा नहीं है। भारतीय कानून में राजनीतिक दलों को आय कर से छूट प्राप्त है। लेकिन आय का स्रोत बताने की मनाही नहीं है। जो अपने चंदे का स्रोत बताना चाहे वो बता सकते हैं। जो नहीं पकड़ा गया वो अपने को संत बताता है।
कोई भी राजनीतिक दल अपने चंदे का स्रोत बताने को तैयार नहीं है। जब सूचना का अधिकार कानून लागू किया गया तब सभी राजनीतिक पार्टियों ने एक सुर से इस बात की वकालत की कि हम इस कानून के बाहर रहेंगे। अगर आपके धन का स्रोत गलत नहीं है तो क्या वजह है कि ये लोग सूचना का अधिकार कानून के अन्तर्गत नहीं आना चाहते ? कुछ तो गड़बड़ है। आज बहुजन समाज के खाते में गड़बड़ी की बात सामने आई है तो सब इसकी निंदा और आलोचना कर रहे हैं। लेकिन दूसरी पार्टियों का क्या ? क्यों नहीं भारतीय जनता पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समेत तमाम राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दल अपने चंदे का ब्यौरा जनता के सामने रखते हैं ?
क्यों नहीं अपनी पार्टी की वेबसाइट पर चंदे की रकम और दाताओं की जानकारी उपलब्ध करवाते हैं ये राजनीतिक दल। सच तो यह है कि इस हमाम में सब ही नंगे हैं। लेकिन जो पकड़ा गया वो चोर बाकि सब संत ! पिछले दिनों एक टीवी चैनेल के कार्यक्रम में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि सिर्फ आम आदमी पार्टी है जो अपने चंदे का पूरा ब्यौरा सामने रखती है। दूसरी पार्टियाँ ऐसी हिम्मत क्यों नहीं दिखाती ? इससे साबित होता है कि कहीं न कहीं इन सबके चंदे की रकम में झोल है। कहा जाता है कि 20,000 रुपये तक की रकम नकद में चंदे के रूप में ले सकती हैं राजनीतिक पार्टियाँ। यहीं से तो भ्रष्टाचार की शुरुआत होती है।
क्यों नहीं कानून में बदलाव किया जाता है कि चंदे के रूप में लिए गए एक-एक रूपये का हिसाब देना होगा ? क्या सारे नियम कानून सिर्फ आम जनता के लिए है ?
कोई भी राजनीतिक दल अपने चंदे का स्रोत बताने को तैयार नहीं है। जब सूचना का अधिकार कानून लागू किया गया तब सभी राजनीतिक पार्टियों ने एक सुर से इस बात की वकालत की कि हम इस कानून के बाहर रहेंगे। अगर आपके धन का स्रोत गलत नहीं है तो क्या वजह है कि ये लोग सूचना का अधिकार कानून के अन्तर्गत नहीं आना चाहते ? कुछ तो गड़बड़ है। आज बहुजन समाज के खाते में गड़बड़ी की बात सामने आई है तो सब इसकी निंदा और आलोचना कर रहे हैं। लेकिन दूसरी पार्टियों का क्या ? क्यों नहीं भारतीय जनता पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समेत तमाम राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दल अपने चंदे का ब्यौरा जनता के सामने रखते हैं ?
क्यों नहीं अपनी पार्टी की वेबसाइट पर चंदे की रकम और दाताओं की जानकारी उपलब्ध करवाते हैं ये राजनीतिक दल। सच तो यह है कि इस हमाम में सब ही नंगे हैं। लेकिन जो पकड़ा गया वो चोर बाकि सब संत ! पिछले दिनों एक टीवी चैनेल के कार्यक्रम में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि सिर्फ आम आदमी पार्टी है जो अपने चंदे का पूरा ब्यौरा सामने रखती है। दूसरी पार्टियाँ ऐसी हिम्मत क्यों नहीं दिखाती ? इससे साबित होता है कि कहीं न कहीं इन सबके चंदे की रकम में झोल है। कहा जाता है कि 20,000 रुपये तक की रकम नकद में चंदे के रूप में ले सकती हैं राजनीतिक पार्टियाँ। यहीं से तो भ्रष्टाचार की शुरुआत होती है।
क्यों नहीं कानून में बदलाव किया जाता है कि चंदे के रूप में लिए गए एक-एक रूपये का हिसाब देना होगा ? क्या सारे नियम कानून सिर्फ आम जनता के लिए है ?
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