नोटबंदी के कारण आम जनता को कितनी परेशानी हो रही है, यह किसी से छिपी नहीं है। लोग लंबी-लंबी कतार में 2-3 घंटे लगे रहते हैं, तब कहीं जा के पैसे निकलवा / बदलवा पाते हैं। अब तो सरकार ने नोट बदलना भी बंद कर दिया है। लंबी लाइनों में कभी मारपीट हो जाती है तो कभी पुलिस डंडे चलाने लगती है। कई लोगों के तो मरने की भी खबर है लाइन में लगे-लगे। व्यापार ठप्प पड़ गया है, दुकानदारो को ग्राहक नहीं मिल रहे हैं और ग्राहकों को सामान नहीं मिल रहा है। ऊपर से सितम ये कि पुराने नोटों से आप डीजल-पेट्रोल तो भरवा सकते हो, बिल भी जमा करवा सकते हो लेकिन लेकिन आटा, दाल, चावल, दूध, सब्जी जैसी रोजमर्रा के सामान नहीं खरीद सकते।
इन्ही सब परेशानियो को लेकर विपक्ष ने सरकार से नोटबंदी पर सदन में बहस कराने का आग्रह किया। सरकार ने शुरू में तो बहुत टाल- मटोल किया लेकिन अंततः विपक्ष के दबाव के आगे सरकार को झुकना पड़ा। तभी विपक्ष ने राज्यसभा में शर्त रख दी कि चर्चा तभी होगी जब प्रधानमंत्री जी सदन में मौजूद रहेंगे। ये भी सरकार को मंजूर नहीं था। चर्चा प्रधानमंत्री जी की गैर-मौजूदगी में ही शुरू हुई। लेकिन विपक्ष के भारी दबाव के बाद प्रधानमंत्री जी चर्चा में हिस्सा लेने के लिए राजी हुए और कल मध्याह्न भोजन के पहले तक राज्यसभा में मौजूद भी रहे।
लेकिन 2 बजे जब फिर से सदन की कार्यवाही शुरू हुई तो प्रधानमंत्री जी उपस्थित नहीं थे। इस पर विपक्ष ने हंगामा मचाना शुरू किया। विपक्ष का कहना था कि प्रधानमंत्री जी जब सदन में रहेंगे तभी चर्चा होगी। इस पर सरकार का कहना था कि प्रधानमंत्री जी चर्चा के दौरान लगातार कैसे बैठे रह सकते हैं ? वो चर्चा में हिस्सा जरूर लेंगे। तभी राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद जी ने सरकार के तर्क की जबरदस्त काट कर दी। उन्होंने कहा कि जब 2G पर चर्चा चल रही थी तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी चर्चा के दौरान लगातार 2 दिनों तक सदन में बैठे थे।
आखिर क्यों प्रधानमंत्री जी सदन में बैठना नहीं चाहते ? क्या विपक्ष के तीखे तर्क उनसे सुने नहीं जा रहे ? क्यूँ नहीं सदन में बैठ कर माननीय सदस्यों की चिंता और आशंका को सुनते ? क्या सदन से इस तरह भागना उनकी गरिमा को शोभा देता है ? सदन का सामना क्यों नहीं करना चाहते मोदी जी ? जब सरकार ने कोई कदम उठाया है तो प्रधानमंत्री जी को इसके विरोध में उठ रहे स्वर को सुनने से कतई भी हिचकना नहीं चाहिए और सदन का सामना करना चाहिए।
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