यूँ तो लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टियाँ बनती ही रहती हैं, चुनाव लड़ती रहती हैं। किसी को अभूतपूर्व जीत मिलती है तो किसी को अभूतपूर्व हार। 2012 में "आम आदमी पार्टी" की स्थापना के बाद दिल्ली के विधानसभा चुनाव में जो अभूतपूर्व सफलता मिली उसको देखकर बहुतों के मन में यह बात घर कर गई कि नई पार्टी बना लो तो सत्ता खुद ब खुद कदम चूमने लगती है।
फिर तो विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी बनाने की परंपरा ही शुरू हो गयी। पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव के पहले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने "हिंदुस्तान अवाम मोर्चा" की स्थापना की। चुनाव में पार्टी की कैसी दुर्गति हुई, ये सबको पता है।
इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए भारतीय जनता पार्टी से निकले नेता, पूर्व क्रिकेटर, पूर्व लोकसभा सदस्य, पूर्व राज्यसभा सदस्य, क्रिकेट कॉमेंटेटर एवं टेलीविजन की दुनिया का जाना माना चेहरा नवजोत सिंह सिद्धू ने "आवाज - ए - पंजाब" की स्थापना की।
लेकिन कुछ ही दिनों बाद इनको समझ आ गया कि एक नई पार्टी बनाना जितना आसान है, इससे जनता को जोड़ना और चुनाव लड़ना उतना ही मुश्किल। बनी-बनाई पार्टी से चुनाव लड़ना बड़ा आसान है। इसलिए इसका इल्म होते ही उन्होंने घोषणा कर दी कि "आवाज - ए - पंजाब" एक राजनीतिक पार्टी नहीं बल्कि एक मोर्चा होगा।
अब इसी महीने की पहली तारीख को "आम आदमी पार्टी", पंजाब के पूर्व संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर ने एक अलग पार्टी बना ली। "अपना पंजाब पार्टी" नाम है उनकी पार्टी का। सुनने में आया है कि एक महागठबंधन बनाकर उसके नेतृत्व में पार्टी चुनाव लड़ेगी। गठबंधन पंजाब विधानसभा की सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ेगा।
उसके अगले ही दिन "आम आदमी पार्टी" से निष्कासित नेता योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने भी अपनी राजनीतिक पार्टी की घोषणा की। "स्वराज इंडिया" के नाम से पार्टी बनी है इनकी। अब पार्टी के नाम में एक शब्द हिंदी और एक शब्द आंग्लभाषा के रखने के पीछे क्या औचित्य है, ये तो वही जाने।
अब भारत का लोकतंत्र और मजबूत होगा। नई-नई पार्टियाँ, नए-नए नेता, जनता की भलाई करने का दावा तो बहुत करते हैं, लेकिन जनता कितना भरोसा करती है इन पर, ये तो वक्त ही बताएगा। फिलहाल इन पार्टियों और इनको नेताओं को साधुवाद, शुभकामनाएं।
फिर तो विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी बनाने की परंपरा ही शुरू हो गयी। पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव के पहले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने "हिंदुस्तान अवाम मोर्चा" की स्थापना की। चुनाव में पार्टी की कैसी दुर्गति हुई, ये सबको पता है।
इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए भारतीय जनता पार्टी से निकले नेता, पूर्व क्रिकेटर, पूर्व लोकसभा सदस्य, पूर्व राज्यसभा सदस्य, क्रिकेट कॉमेंटेटर एवं टेलीविजन की दुनिया का जाना माना चेहरा नवजोत सिंह सिद्धू ने "आवाज - ए - पंजाब" की स्थापना की।
लेकिन कुछ ही दिनों बाद इनको समझ आ गया कि एक नई पार्टी बनाना जितना आसान है, इससे जनता को जोड़ना और चुनाव लड़ना उतना ही मुश्किल। बनी-बनाई पार्टी से चुनाव लड़ना बड़ा आसान है। इसलिए इसका इल्म होते ही उन्होंने घोषणा कर दी कि "आवाज - ए - पंजाब" एक राजनीतिक पार्टी नहीं बल्कि एक मोर्चा होगा।
अब इसी महीने की पहली तारीख को "आम आदमी पार्टी", पंजाब के पूर्व संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर ने एक अलग पार्टी बना ली। "अपना पंजाब पार्टी" नाम है उनकी पार्टी का। सुनने में आया है कि एक महागठबंधन बनाकर उसके नेतृत्व में पार्टी चुनाव लड़ेगी। गठबंधन पंजाब विधानसभा की सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ेगा।
उसके अगले ही दिन "आम आदमी पार्टी" से निष्कासित नेता योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने भी अपनी राजनीतिक पार्टी की घोषणा की। "स्वराज इंडिया" के नाम से पार्टी बनी है इनकी। अब पार्टी के नाम में एक शब्द हिंदी और एक शब्द आंग्लभाषा के रखने के पीछे क्या औचित्य है, ये तो वही जाने।
अब भारत का लोकतंत्र और मजबूत होगा। नई-नई पार्टियाँ, नए-नए नेता, जनता की भलाई करने का दावा तो बहुत करते हैं, लेकिन जनता कितना भरोसा करती है इन पर, ये तो वक्त ही बताएगा। फिलहाल इन पार्टियों और इनको नेताओं को साधुवाद, शुभकामनाएं।
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