23 अक्टूबर, 2016
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप तो लगते ही रहते हैं। तरह-तरह के आरोप होते हैं। कुछ हल्की-फुल्की, कुछ गंभीर, कुछ अति गंभीर तो कुछ अपवाद वाले गंभीर। मतलब एक्सेप्शनल, रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर टाइप वाले इल्जाम। आरोप लगने पर विपक्षी पार्टी हंगामा मचाती है और आरोपी नेता अपने बचाव में तरह-तरह की दलीले पेश करता है। लेकिन आरोपी नेता की पार्टी किस तरह से प्रतिक्रिया देती है, ये देखने वाली बात होती है।
आमतौर पर पार्टियाँ अपने नेता पर इल्जाम लगते ही उसके बचाव में डटकर खड़ी हो जाती है, आरोप के गुण अवगुण का विचार किये बिना । जी, हमारा नेता तो गलत कर ही नहीं सकता। अगर मामला थोड़ा ज्यादा गंभीर होता है तो पार्टी उसके कृत्य से अपने आप को अलग कर लेती है। अगर बहुत ही ज्यादा, अति गंभीर वाली बात हुई तो उस नेता को मना कर, समझा कर, इस्तीफा देने के लिए राजी किया जाता है।
लेकिन शायद ही स्थापित राजनीतिक पार्टियों ने कभी भी अपने नेता पर गंभीर आरोप लगते ही पार्टी से निकाला हो। बस कहते हैं, अदालत का फैसला आने दीजिये, फैसले का सम्मान करेंगे। आरोपी नेता भी कहता है, न्यायपालिका पर मुझे पूरा भरोसा है, जो फैसला आएगा उसका सम्मान करूँगा। भाई, अदालत के फैसले का सम्मान तो आपको करना ही पड़ेगा। लेकिन नैतिकता, लोक - लाज भी तो कोई चीज होती है।
अभी भारतीय जनता पार्टी के एक सांसद पर आरोप लगा है। आरोप गंभीर है, कोई खुल के कुछ बोल नहीं रहा है। लेकिन पार्टी में अभी भी बने हुए हैं वो। न तो उनको पार्टी अभी तक इस्तीफा देने के लिए मना पाई है शायद, और न ही पार्टी ने उनको बाहर का रास्ता दिखाया है अभी तक। वैसे पार्टी विद डिफेरेंस मानती है खुद को भारतीय जनता पार्टी, राजनीति में शुचिता की बात भी करती है।
लेकिन, क्या केजरीवाल जी जैसा फैसला कोई राजनीतिक पार्टी कर सकती है आज के दिनों में ? शायद नहीं, क्योंकि इसके लिए केजरीवाल जैसा जिगरा चाहिए। एक ऐसा जिगरा जिसको सत्ता का तनिक भी लोभ नहीं हो। बंगले में रहकर भी फकीरी का जीवन जीता हो। तख़्त - ओ - ताज को ठुकराने के लिए तैयार बैठा हो।
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