20 अक्टूबर, 2016
रेल मंत्री सुरेश प्रभु की कार्य- कुशलता की तारीफ किए नहीं थकते भारतीय जनता पार्टी के नेतागण। मोदी जी ने भी अपने हिसाब से सक्षम नेता को रेलवे का प्रभार सौंपा था। मंत्री बनने के बाद से ही प्रभु जी ने रेलवे में तरह तरह के प्रयोग शुरू करने शुरू कर दिए। यात्रियों को नई नई सुविधायें देने की बात कही गयी। ट्रेनों के टाइम से पहुचने की भी बात कही जा रही है आजकल। मतलब इस तरह का माहौल पैदा किया जा रहा हो मानो रेलवे की काया-कल्प ही हो गई हो। तारीफ में कोई कमी नहीं हो रही है और न ही इसका श्रेय लेने में।
प्रभु जी के कार्यकाल में कई बार यात्री किराया बढ़ाये गए। खूब प्रीमियम ट्रेने चलाई जा रही है और प्रीमियम तत्काल टिकट भी कटने लगे हैं। अभी पिछले ही दिनों से कुछ चुनिंदा ट्रेनों में सर्ज प्राइसिंग भी लागू की गई है। मतलब कि यात्रियों की जेब काटने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है रेलवे। लेकिन ये क्या ? समाचारों के अनुसार इस साल 1 अप्रैल से 10 अक्टूबर के बीच पिछले साल के मुकाबले रेलवे की आमदनी में 4000 करोड़ की कमी आई है। ये हाल तब है जब लंबी दूरी के ट्रेनों में स्लीपर क्लास और सामान्य क्लास में पैर रखने की भी जगह नहीं होती। लोग शौचालय में भी बैठे रहते हैं।
तो अब क्या हुआ अर्थशास्त्र को ? मोदी जी के कार्य-कुशलतम मंत्रियों में शुमार प्रभु जी अब क्या करेंगे ? क्या अब फिर से किराये बढ़ाए जाएंगे ? इसके अलावा और क्या उपाय हो सकता है ? रेलवे की माल ढुलाई से होने वाली कमाई में भी कमी आई है। इसका सीधा कारण यह भी हो सकता है कि जिस तरह से माल ढुलाई किराया बढ़ाया गया है, उससे माल वाहकों ने रोड ट्रांसपोर्ट का रुख कर लिया हो। यह तो अर्थशास्त्र का सामान्य सा ज्ञान रखने वाला भी समझ लेता है कि मूल्य में वृद्धि से आमदनी में इजाफा होने की गारंटी नहीं होती। उपभोक्ता दूसरे विकल्प की तरफ भी आकर्षित हो सकता है।
अब अगर फिर से यात्री किराया बढ़ाया गया तो हो सकता है कि यात्री भी सड़क परिवहन का विकल्प चुनने पर गौर करें। पिछले कुछ सीजन से त्योहारों के दौरान आरक्षित टिकट न मिलने की सूरत में समर्थ लोग अपने निजी वाहन से ही 1000 किलोमीटर की दूरी तय करने लगे हैं। यात्री किराया में तार्किक वृद्धि न होने पर यह भी एक कारण हो जायेगा लोगों के सड़क परिवहन को चुनने का। फिर तो रेलवे की आमदनी में और ज्यादा कमी हो सकती है।
ऐसे में रेल मंत्री सुरेश प्रभु क्या नीति बनाते हैं और कैसी रणनीति अख्तियार करते हैं, ये जरूर काबिल - ए - गौर होगा।
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