9 सितंबर, 2016
आज कल कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी "खटिये पर चर्चा" कर रहे हैं। गांव देहात में आज भी खटिया बैठने-सोने के काम में लाई जाती है हालाँकि धीरे-धीरे यह विलुप्त सी होती जा रही है। इसकी जगह पहले कुर्सी और चौकी फिर सोफे और पलंग ने ले लिया। वैसे खटिया का नाम सुनते ही हिंदी सिनेमा के कई सारे खटिया गीत जेहन में आ जाते हैं। एक दौर ही चल पड़ा था उन दिनों खटिया पर गीत लिखने का। गीतकारों से फिल्मों के लिए एक "खटिया" गीत लिखने की फरमाइश तो की ही जाती थी, डायरेक्टर्स प्रोड्यूसर्स द्वारा। "खटिया" गीत उन दिनों फिल्म हिट कराने की गारंटी समझी जाने लगी थी। वैसे "खटिया" गीत को उन दिनों अश्लील भी माना जाता था, लेकिन सुने भी खूब जाते थे। भोजपुरी फिल्मों में तो खटिया गीतों की भरमार है ही।
सुना है ये "खटिये पर चर्चा" का आइडिया आज के दौर में चुनाव प्रबंधन के महारथी कहे जाने वाले, प्रशांत किशोर का है। आजकल वो अपनी सेवा कांग्रेस पार्टी को पंजाब और उत्तरप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव 2017 के लिए दे रहे हैं। इससे पहले वो अपनी सेवा भारतीय जनता पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव 2014 और जनता दल यूनाइटेड के लिए बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में दे चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अभूतपूर्व सफलता मिली थी। उनकी कामयाबी को देखकर ही नीतीश जी ने उनकी सेवा ली होगी, फिर भी जनता दल यूनाइटेड को सिर्फ 71 सीटें मिली जबकि राजद को 80 सीटें मिली। लेकिन प्रशांत किशोर की डिमांड में कोई कमी नहीं आई।
अब कांग्रेस भी प्रशांत किशोर के सहारे पंजाब और उत्तर प्रदेश में सत्ता का लंबा वनवास ख़त्म करने की आस लगाए हुए है। पंजाब में 10 साल और उत्तर प्रदेश में 27 साल से कांग्रेस सत्ता से बाहर है। लेकिन सवाल ये है कि वर्षों तक केंद्र और कई राज्यों में राज करने वाली कांग्रेस क्या अब कुशल चुनावी रणनीतिकारों से विहीन हो गई है जो एक ऐसे व्यक्ति की सेवा ले रही है जिसको भारतीय राजनीति का ज्यादा ज्ञान नहीं है ? या फिर कांग्रेस सत्ता पाने के लिए इतनी लालायित हो गयी है कि चुनाव प्रबंधक की सेवा लेने को विवश हो गयी है ? या फिर उपाध्यक्ष महोदय को अपने राजनीतिक योद्धाओं की कार्य-कुशलता पर भरोसा नहीं रहा ? इससे पहले तो हर चुनाव में कांग्रेसी राजनीतिज्ञ ही चुनाव प्रचार एवं प्रबंधन की कमान सँभालते थे।
जो भी हो, अब कांग्रेस पूरे उत्तर प्रदेश में "खटिये पर चर्चा" करने में जुट गई है। लेकिन इसकी शुरुआत अच्छी नहीं रही। पहली चर्चा देवरिया जिले के रुद्रपुर गांव में हुई। लोग चर्चा में भाग लेने तो आये जरूर, अब खुद ही आये या लाये गए थे, ये अलग चर्चा का विषय है। जाते-जाते बहुत से लोग खटिया भी अपने साथ ले गए। लोगों में खटिया ले जाने को लेकर छीना-झपटी भी हो रही थी। एक आदमी तो दो-दो खटिया संभाले हुआ था और दूसरा उससे छीनने की कोशिश कर रहा था। जो उठाने में सफल नहीं हुआ वो उसको तोड़ कर ले जाने की कोशिस कर रहा था।
सुना है इस कारण कांग्रेस पार्टी को अच्छी खासी चपत पर गयी। अगली सभा में एलान करना पड़ा कि खटिया लेकर न जाएं, यही खटिया राहुल जी की अगली सभा में भी जाएगी। अब वोट के साथ-साथ कांग्रेस के साथ खटिया बचाने की भी समस्या है। लेकिन "खटिया पर चर्चा" बंद नहीं होगी, हो भी कैसे ? जिनके सहारे चुनावी नदी पार करनी है, उनकी राय की अनदेखी कैसे पर सकती है कांग्रेस ।
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