आजादी के बाद से हिंदुस्तान में न जाने कितनी ही राजनीतिक पार्टियाँ बनी और बहुत सी पार्टियों का अब नामोनिशान भी नहीं है। जनसंघ, जनता पार्टी का निर्माण काफी पहले हुआ था। लेकिन अब उसकी प्रासंगिकता कितनी है ? 1989 के लोकसभा चुनाव के समय विभिन्न क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं ने मिलकर जनता दल का निर्माण किया था जिसके नेताओं में प्रमुख रूप से वी पी सिंह जी, चंद्रशेखर जी और देवीलाल जी थे। पार्टी वाम मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से केंद्र में सरकार बनाने में सफल भी हुई थी। उसके बाद चंद्रशेखर जी ने अलग होकर समाजवादी जनता पार्टी का निर्माण किया। इसके बाद तो जनता दल में टूट की परंपरा सी ही शुरू हो गयी।
मुलायम सिंह यादव जी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का गठन हुआ। फिर उड़ीसा में बीजू जनता दल का निर्माण हुआ तो हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल, बिहार में समता पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल का। अजित सिंह जी द्वारा भी उत्तर प्रदेश में राजनीतिक पार्टी का निर्माण हुआ। काफी पहले ही बहुजन समाज पार्टी का भी गठन हो चूका था। कभी भी भारतीय राजनीति में हड़कम्प नहीं मचा किसी नई राजनीतिक पार्टी के अस्तित्व में आने पर। पुरानी पार्टियों ने नई पार्टियों का दिल खोलकर स्वागत किया। नई पार्टी की सफलता से पुरानी पार्टियों को हारने का थोड़ा ग़म तो हुआ लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं।
2011 में अन्ना आंदोलन के पश्चात् आंदोलन के हिस्सा रहे कुछ लोगों को यह लगा कि अनशन और आंदोलन से कुछ खास होने वाला नहीं है। एक राजनीतिक पार्टी का निर्माण करके और चुनाव में हिस्सा लेकर ही जनता की बरसों से चली आ रही समस्याओं को ख़त्म किया जा सकता है। इसी के फलस्वरूप एक राजनीतिक पार्टी की स्थापना की प्रक्रिया शुरू हुई और अंततः 26 नवम्बर, 2012 को आम आदमी पार्टी की स्थापना हुई। अगले ही साल 2013 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने थे। पार्टी पूरी ताकत से चुनाव की तैयारी में जुट गई और पहली बार दिल्ली में 28 सीट जीतकर सरकार बनाने में कामयाब हुई।
जो कांग्रेस और भाजपा इस पार्टी को नगण्य मान कर चल रही थी और यह सोच रही थी कि इस पार्टी को ज्यादा से ज्यादा 5 सीट ही मिल पायेगी, आम आदमी पार्टी की आशातीत सफलता देखकर भौंचक्की रह गयी। और दिल को तसल्ली देती रही कि पार्टी दिल्ली की जनता के भोलेपन का फायदा उठाने में सफल हो गयी है। लेकिन जब पार्टी को दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 में 70 में से 67 सीट मिली, तब से देश की दोनों ही सबसे बड़ी पार्टियों, भाजपा और कांग्रेस को यह पार्टी फूटे आँख भी नहीं सुहा रही है। पहले दिन से ही इसको असफल बताया जा रहा है।
एक अघोषित परंपरा सी रही है कि किसी भी नई सरकार के बनने के बाद कम से कम छः महीने तक उस सरकार की आलोचना नहीं की जाती और उसको बिना टोका-टोकी के काम करने दिया जाता है। लेकिन देश के अनुभवी नेताओं से परिपूर्ण पार्टियाँ, भाजपा और कांग्रेस एक दिन भी परहेज नहीं कर पाई। नित दिन नए दुष्प्रचार किए जाते हैं इसके खिलाफ। ऐसा नहीं है कि दिल्ली सरकार कोई भी जनहित के काम नहीं कर रही है, लेकिन इसकी तारीफ करने के बजाए विरोधी दल दुष्प्रचार में ही लगे रहते हैं। भाजपा और कांग्रेस का लगभग पूरे देश में कार्यकर्त्ता आधार है। इसका इस्तेमाल अपनी पार्टी के प्रचार में कम और आम आदमी पार्टी तथा केजरीवाल जी के खिलाफ दुष्प्रचार में ज्यादा कर रही हैं दोनों पार्टियाँ।
दुष्प्रचार का ये आलम है कि दिल्ली के बाहर रहने वाले लोग जिनको दिल्ली में क्या हो रहा है कुछ भी नहीं पता, लेकिन यह कहते नहीं थकते कि केजरीवाल कुछ नहीं कर रहा है। दिल्ली में कुछ भी नहीं हो रहा है। दिल्ली इनसे संभाली नहीं जाती और चले हैं पंजाब जीतने। मुख्यमंत्री पद संभाला नहीं जाता इनसे, और चले हैं प्रधानमंत्री बनने। कोई इनसे पूछे कि क्या प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखना पाप है या जुर्म है ? इनसे पूछे कि दिल्ली में क्या होना चाहिए जो नहीं रहा है, तो इनके पास जवाब नहीं होता। ऐसा क्या हो रहा है, ऐसा क्या जुल्म कर दिया है केजरीवाल जी ने जो नहीं होना चाहिए, तो इनके पास कोई जवाब नहीं होता।
दरअसल भाजपा और कांग्रेस को अपनी बरसों पुरानी ठाट-बाट आम आदमी पार्टी के आने के बाद से ख़त्म होती सी दिख रही है। पिछले कई दशकों से केंद्र में या तो भाजपा-नीत एनडीए या फिर कांग्रेस समर्थित पार्टियों या कांग्रेस-नीत यूपीए की सरकार रही है। कुछ प्रदेशों में भी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सत्ता की अदला-बदली होती रही है। लेकिन आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में 2013 और 2015 में इस अदला बदली की परम्परा को ख़त्म कर दिया। पंजाब में भी 2017 के चुनाव में अदला-बदली नहीं होती दिख रही है और आम आदमी पार्टी की सरकार बनने की पूरी सम्भावना दिख रही है।
अगर ऐसा हुआ तो धीरे-धीरे अन्य राज्यों में भी सत्ता से भाजपा और कांग्रेस का सफाया हो सकता है। इसी डर से भाजपा और कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और केजरीवाल जी के खिलाफ दुष्प्रचार और इनको बदनाम करने में लगी है। वरना दिल्ली में क्या हो रहा है इससे बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों की जनता को कोई खास मतलब नहीं रहता था। कभी भी दूसरे प्रदेश की जनता को इस बात से इतना ज्यादा मतलब नहीं रहा कि 15 साल से शीला दीक्षित सरकार क्या कर रही है। आम आदमी पार्टी को भी इस दुष्प्रचार का माकूल जवाब उतनी ही सिद्दत से देनी चाहिए वरना जिस उद्देश्य के लिए पार्टी का गठन हुआ था, उसमें कठिनाई आ सकती है ।
जो कांग्रेस और भाजपा इस पार्टी को नगण्य मान कर चल रही थी और यह सोच रही थी कि इस पार्टी को ज्यादा से ज्यादा 5 सीट ही मिल पायेगी, आम आदमी पार्टी की आशातीत सफलता देखकर भौंचक्की रह गयी। और दिल को तसल्ली देती रही कि पार्टी दिल्ली की जनता के भोलेपन का फायदा उठाने में सफल हो गयी है। लेकिन जब पार्टी को दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 में 70 में से 67 सीट मिली, तब से देश की दोनों ही सबसे बड़ी पार्टियों, भाजपा और कांग्रेस को यह पार्टी फूटे आँख भी नहीं सुहा रही है। पहले दिन से ही इसको असफल बताया जा रहा है।
एक अघोषित परंपरा सी रही है कि किसी भी नई सरकार के बनने के बाद कम से कम छः महीने तक उस सरकार की आलोचना नहीं की जाती और उसको बिना टोका-टोकी के काम करने दिया जाता है। लेकिन देश के अनुभवी नेताओं से परिपूर्ण पार्टियाँ, भाजपा और कांग्रेस एक दिन भी परहेज नहीं कर पाई। नित दिन नए दुष्प्रचार किए जाते हैं इसके खिलाफ। ऐसा नहीं है कि दिल्ली सरकार कोई भी जनहित के काम नहीं कर रही है, लेकिन इसकी तारीफ करने के बजाए विरोधी दल दुष्प्रचार में ही लगे रहते हैं। भाजपा और कांग्रेस का लगभग पूरे देश में कार्यकर्त्ता आधार है। इसका इस्तेमाल अपनी पार्टी के प्रचार में कम और आम आदमी पार्टी तथा केजरीवाल जी के खिलाफ दुष्प्रचार में ज्यादा कर रही हैं दोनों पार्टियाँ।
दुष्प्रचार का ये आलम है कि दिल्ली के बाहर रहने वाले लोग जिनको दिल्ली में क्या हो रहा है कुछ भी नहीं पता, लेकिन यह कहते नहीं थकते कि केजरीवाल कुछ नहीं कर रहा है। दिल्ली में कुछ भी नहीं हो रहा है। दिल्ली इनसे संभाली नहीं जाती और चले हैं पंजाब जीतने। मुख्यमंत्री पद संभाला नहीं जाता इनसे, और चले हैं प्रधानमंत्री बनने। कोई इनसे पूछे कि क्या प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखना पाप है या जुर्म है ? इनसे पूछे कि दिल्ली में क्या होना चाहिए जो नहीं रहा है, तो इनके पास जवाब नहीं होता। ऐसा क्या हो रहा है, ऐसा क्या जुल्म कर दिया है केजरीवाल जी ने जो नहीं होना चाहिए, तो इनके पास कोई जवाब नहीं होता।
दरअसल भाजपा और कांग्रेस को अपनी बरसों पुरानी ठाट-बाट आम आदमी पार्टी के आने के बाद से ख़त्म होती सी दिख रही है। पिछले कई दशकों से केंद्र में या तो भाजपा-नीत एनडीए या फिर कांग्रेस समर्थित पार्टियों या कांग्रेस-नीत यूपीए की सरकार रही है। कुछ प्रदेशों में भी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सत्ता की अदला-बदली होती रही है। लेकिन आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में 2013 और 2015 में इस अदला बदली की परम्परा को ख़त्म कर दिया। पंजाब में भी 2017 के चुनाव में अदला-बदली नहीं होती दिख रही है और आम आदमी पार्टी की सरकार बनने की पूरी सम्भावना दिख रही है।
अगर ऐसा हुआ तो धीरे-धीरे अन्य राज्यों में भी सत्ता से भाजपा और कांग्रेस का सफाया हो सकता है। इसी डर से भाजपा और कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और केजरीवाल जी के खिलाफ दुष्प्रचार और इनको बदनाम करने में लगी है। वरना दिल्ली में क्या हो रहा है इससे बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों की जनता को कोई खास मतलब नहीं रहता था। कभी भी दूसरे प्रदेश की जनता को इस बात से इतना ज्यादा मतलब नहीं रहा कि 15 साल से शीला दीक्षित सरकार क्या कर रही है। आम आदमी पार्टी को भी इस दुष्प्रचार का माकूल जवाब उतनी ही सिद्दत से देनी चाहिए वरना जिस उद्देश्य के लिए पार्टी का गठन हुआ था, उसमें कठिनाई आ सकती है ।
कुछ तो बात है केजरीवाल में जो सारे हिंदुस्तान की पार्टियाँ टांग खीचने में लगी है
जवाब देंहटाएंक्यों सारे राज्यों में से सिर्फ delhi के cm की ही negativ ख़बरें न्यूज़ पर दिखाई जाती है
जबकि सभी विरोधी भी दबी जुबान से मानते हे की बंदें ने काम करवाया है लाखों अडचनो के बाद भी
राजनीती में अगर मेरी रूचि बड़ी है तो सिर्फ उसी आदमी की वजह से
कुछ तो है बन्दे में
जवाब देंहटाएंKEJRIWAL KI a am admi party pore DESH ME feel RAHI he PANJAB goa gujrat ultra khand HAR jagah SE sapot MIL RAHA he
जवाब देंहटाएंyashodanandan sharma @YashodanandanS 2h2 hours ago
जवाब देंहटाएंआज ही के दिन 2011 में ... आधी रात को बाबा रामदेव सलवार पहन कर भागे थे
आंदोलन व योग प्राणायम के साधको की
श्रद्धा का मरण दिन था ये