रेलवे ने एक बार फिर से यात्री किराया बढ़ा दिया और कल से लागु भी हो गया है। पहले रेल बजट में ही किराया बढ़ाया जाता था, साल में सिर्फ एक बार। लोगों को भी थोड़ा सुकून होता था कि चलो एक ही बार किराया बढ़ रहा है। लेकिन अब तो साल में न जाने कितनी बार यात्रियों की जेब पर कैंची चल जाती है। जितने योग्य मंत्री उतना ज्यादा किराया। तरह-तरह के तरीके आजमाये जा रहे हैं, यात्रियों की जेब पर डांका डालने के। गरीब पहले से ही रोटी, दाल, सब्जी की महंगाई से परेशान हैं ऊपर से प्रभु जी ने एक और मेहरबानी कर दी। अब गरीब रोजी-रोटी के लिए कैसे जा पायेगा ?
जब सुरेश प्रभु जी को रेलवे मंत्रालय सौंपा गया था लगभग 2 साल पहले, तो बड़े जोर-शोर से प्रचार किया गया था कि बड़े ही योग्य व्यक्ति हैं, बहुत कार्य-कुशल हैं। रेलवे का कायाकल्प कर देंगे, बिलकुल क्रांति ला देंगे। दो साल हो गए कुछ कायाकल्प या क्रांति तो दिखी नहीं। ट्रेनें वैसे ही लेट चल रही है, आबादी के हिसाब से ट्रेनों की संख्या अभी भी कम है। हाँ यात्री किराये में जरूर क्रांति आयी है। योग्य मंत्री जी ने यात्रियों के जेब से पैसे निकालने के जरूर अनूठे, अनोखे और क्रन्तिकारी तरीके ईजाद किये हैं। ट्रेन में सुविधाओं में वृद्धि हो न हो लेकिन किराये में वृद्धि जरूर की जा रही है, नए-नए तरीके अपना के।
प्रभु जी जब रेल मंत्री बने थे तो जनता को उम्मीद थी कि रेलवे में गुणात्मक परिवर्तन होगा, गुणात्मक वृद्धि होगी। तो लो जी, प्रभु जी ने आपकी उम्मीद पूरी कर दी। कर दी है गुणात्मक वृद्धि इस बार। अरे रुकिए, रुकिए, ट्रेनों में मिलने वाली सुविधाओं में नहीं बल्कि यात्री किरायों में। गुणात्मक का आशय गुण से नहीं, गुणा से है, आंग्लभाषा के जानकार मित्रों को बता दूँ, कि ये क्वालिटेटिव नहीं मल्टीप्लिकेटिव वृद्धि है। इस बार तीन तरह के ट्रेनों में किराए की वृद्धि की गयी है। राजधानी, शताब्दी और दुरंतो एक्सप्रेस में। वृद्धि ऐसी कि चक्कर खा जायेंगे कम पढ़े-लिखे लोग इसको समझने में।
शुरू के 10% टिकट तो बेस रेट पर ही बिकेंगे, यानि जितना किराया अभी लगता है उतना ही। लेकिन ज्योंही 10% टिकटें बिक जाएँगी, किराये में भी 10% की वृद्धि। फिर अगले 10% टिकट के लिए 10% और वृद्धि, मतलब बेस किराये पर 20% ज्यादा। फिर अगले 10% टिकट के लिए 10% और वृद्धि, मतलब बेस किराये पर 30% ज्यादा। फिर अगले 10% टिकट के लिए 10% और वृद्धि, मतलब बेस किराये पर 40% ज्यादा। सिर्फ 3 AC के टिकट के लिए इतना ही, लेकिन 2 AC, स्लीपर, चेयर कार, 2 S के टिकट के लिए फिर अगले 10% टिकट के लिए 10% और वृद्धि, मतलब बेस किराये पर 50% ज्यादा। लेकिन इसके बाद किराये में कोई वृद्धि नहीं होगी। मतलब आपको कम से कम बेस किराया और ज्यादा से ज्यादा बेस किराया का डेढ़ गुणा ज्यादा किराया देंगे पड़ेगा। उसके साथ, जो अलग-अलग चार्जेज हैं, वो सब तो देना ही है।
अब इनोवेटिव मंत्री जी हैं तो इनोवेटिव तरीका ही अपनाएंगे न। अंक गणित से सीधा बीज गणित पर पहुँच गए मंत्री जी। अब कितना रुपया लेकर जाएंगे लोग रेल आरक्षण काउंटर पर ? क्या पता कितनी प्रतिशत सीटें बुक हो चूकी हैं ? अपना किराया जोड़ने में भी कितनी परेशानी होगी लोगों को ? कहने को तो ये वृद्धि सिर्फ तीन तरह के ट्रेनों में की गई है, लेकिन ऐसे ट्रेनों की कुल संख्या 100 से भी ज्यादा है। 42 राजधानी एक्सप्रेस हैं, 46 शताब्दी एक्सप्रेस है और 54 दुरंतो एक्सप्रेस है। कहने को कह सकते हैं कि इन सब ट्रेनों में अमीर लोग यात्रा करते हैं और वो लोग इस भार को वहन करने में सक्षम हैं।
दुरंतो के स्लीपर क्लास में भी ये वृद्धि लागू की गयी है और 2 S में भी। लेकिन रेल मंत्री साहेब की दरियादिली देखिये, अमीरों का पूरा ध्यान और ख्याल रखा है उन्होंने। 2 AC, 3 AC, चेयर कार, स्लीपर क्लास और 2 S के किराये में तो वृद्धि की गई है, लेकिन 1 AC और एग्जीक्यूटिव क्लास के किराये में कोई वृद्धि नहीं की गई है। अब ये अमीरों की सरकार है या गरीबों की, इसका पता आसानी से लगाया जा सकता है। इससे पहले छोटे बच्चों को भी अलग सीट लेने पर पूरा किराया देने का नियम बनाया गया। उसके बाद खबर है कि बुजुर्ग अगर अपने परिवार के साथ यात्रा करते हैं तो उनको किराये में रियायत नहीं दी जाएगी। ये बात समझ से परे है कि परिवार के साथ यात्रा करने पर उनके बुजुर्गियत में क्या फर्क आ जाता है ?
कुल मिलाकर जनता से ज्यादा पैसे वसूलने की कवायद ही हो रही है, सुविधाओं में कितना सुधार हो रहा है ये बताने की जरूरत नहीं है।
Deepak Saxena
ReplyDeleteOctober 6 at 10:40pm
माफ़ कीजियेगा "मनोहर पर्रीकर जी" हमारे देश की सेना" पाकिस्तान " का मनोबल तब से तोड़ते आई है, जब आप की उम्र लाली -पाप चूसने की रही होगी ! जब पहली बार हमारे देश की सेना ने " पाकिस्तान " को युद्ध में हराया था ,शायद आप पैदा भी नही हुवे थे ,अगर पैदा हुवे भी होंगे तो अपना पिछवाडा साफ़ कराने के लिए दुसरो पर आश्रित रहना पड़ता होगा !सेना को आप क्या "पराक्रम" याद दिलाओगे सर , सिर्फ लड़ने के लिए ही नही ,सीमा पर पहरा देने के लिए भी "पराक्रम"की आवश्यकता पड़ती है ,और सेना ६९ सालो से ,देश की सीमा पर डटी हवी है !इसलिए आप से हाथ जोड़ कर विनती है "पर्रीकर " साहब ,अपनी संगत अच्छे लोगो से रखिये ,संगत का असर आप पर भी होने लगा है ! इतना फेकना अच्छी बात नही है ! देश पहले ही एक" फेकू "से परेशान है ,दूसरे "फेकू" को झेलना बर्दाश्त के बाहर हो जायेगा ! आप का अपना,,,,,,,,,,,, "भूपेंद्र शर्मा"