6 अगस्त, 2016
परसों ही माननीय उच्च न्यायालय का फैसला आ गया है, साफ़-साफ़ कहा गया है कि दिल्ली अभी भी केंद्र-शासित प्रदेश (यूनियन टेरिटरी) है और उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासक हैं। एलजी साहेब की मर्जी के बिना कोई भी फैसला नहीं लिया जा सकता। एलजी साहेब, कैबिनेट के फैसले को मानने के लिए बाध्य नहीं है। निश्चित रूप से माननीय उच्च न्यायालय का फैसला ऐतिहासिक है। इसमें साफ़-साफ़ एलजी साहेब के अधिकारों की व्याख्या की गई है।
वैसे तो जब से दिल्ली को (अपूर्ण) राज्य का दर्जा दिया गया, तभी से ही उप-राज्य पाल और मुख्यमंत्री के अधिकारों की बात की जाती रही है। मदन लाल खुराना या साहिब सिंह वर्मा का तो याद नहीं लेकिन अपने 15 साल के कार्यकाल के दौरान शीला दीक्षित ने कई बार दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा न होने के कारण अपनी विवशता जाहिर कर चुकी हैं। दोनों ही पार्टियाँ अपने-अपने चुनावी घोषणापत्र में दिल्ली को पूर्ण राज्य कर दर्जा दिए जाने का संकल्प करते देखी गई है। लेकिन केंद्र की सत्ता में आने के बाद किसी ने इस दिशा में पहल नहीं की, कोई फैसला नहीं लिया। बहाने जरूर बनाए गए।
वैसे तो मीडिया और विरोधी दलों ने इस फैसले को केजरीवाल को झटका कहकर खूब प्रचारित किया, लेकिन इससे केजरीवाल और दिल्ली सरकार को कोई झटका नहीं लगा है। झटका तो जनता को लगा है जो केजरीवाल को ही दिल्ली का सबकुछ समझ रही थी। हर समस्या का समाधान केजरीवाल को ही समझ रही थी। झटका तो विरोधी दलों को लगा है जो दिल्ली की हर समस्या चाहे वह दिल्ली सरकार के कार्य क्षेत्र में हो या न हो, के लिए दिल्ली सरकार को ही जिम्मेदार ठहराती थी और हर दूसरे दिन केजरीवाल सरकार को हर मोर्चे पर विफल साबित करने की असफल कोशिश करती थी। विरोधियों के दुष्प्रचार का ये आलम था कि दिल्ली की जनता के कुछ वर्ग को समझाने में ये कुछ हद तक कामयाब भी हो गए थे कि दिल्ली सरकार बहुत निकम्मी है।
अब जनता को साफ़ साफ़ समझ आ गया होगा कि भैया केजरीवाल के हाथ में तो कुछ भी नहीं है, जो करेंगे वो एलजी साहेब ही करेंगे। उम्मीद है कि अब जनता इन भाजपाइयों और कांग्रेसियों के बहकावे में आकर केजरीवाल या मंत्रियों का घेराव या उनके घर पर धरना प्रदर्शन नहीं करेगी। जब केजरीवाल के फैसले को मानने के लिए उपराज्यपाल साहेब बाध्य ही नहीं हैं और न ही इनसे सलाह लेने के लिए बाध्य हैं तो दिल्ली की बदहाली के लिए केजरीवाल या दिल्ली सरकार जिम्मेदार कैसे हो सकती है ?
किशोर जी ,मुझे राजनीति की खबरें ज़्यादा नही भांति मगर आपकी लेखनी ऐसी है कि पढ़ने में अच्छा लगता है ,अच्छा लिखते हैं आप, बधाई हो आपको ....
जवाब देंहटाएंरश्मि जी, मैं समझता हूँ कि वो ज़माने लद गए जब राजनीति अति गंभीर हुआ करती थी और राजनेता उससे भी ज्यादा गंभीर। आज के दौर में राजनीति में हास्य, व्यंग्य, सस्पेंस, एवं दूसरे रसों का भी समावेश हो चूका है जिसका नाम मैं लेना उचित नहीं समझता हूँ। गंभीर लोग राजनीति से धीरे-धीरे दूर हो रहे हैं। यथासंभव राजनीतिक हलचलों को आमजनो की भाषा में अपने निष्पक्ष विचार के साथ प्रस्तुत करने की छोटी सी असफल कोशिश करता हूँ। जब आप जैसे योग्य एवं कुशल लेखिका से तारीफ के दो बोल मिल जाते हैं तो लगता है जैसे सही दिशा में यात्रा कर रहा हूँ। आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आभारी हूँ।
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