22 अगस्त, 2016
इस साल दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल जी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिल्ली के गरीबों को बहुत बड़ा तोहफा दिया। न्यूनतम मजदुरी में लगभग 50% की वृद्धि करने की घोषणा कर दी। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर छत्रसाल स्टेडियम में आयोजित समारोह में बोलते हुए केजरीवाल जी ने कहा कि हमारी सरकार अमीर, मध्यम वर्ग और गरीब, सबका ख्याल रखती है। सिर्फ अमीरों के हित को ध्यान में रखकर बनाई गयी नीति सफल नहीं होती है।
श्री केजरीवाल जी द्वारा घोषित न्यूनतम मजदूरी की नई दर निम्न प्रकार से है।
अकुशल व्यक्ति के लिए : 9,568/- से बढाकर 14,052 /- प्रति माह।
अर्ध-कुशल व्यक्ति के लिए : 10,582/- से बढाकर 15,471 /- प्रति माह।
कुशल व्यक्ति के लिए : 11,622/- से बढाकर 17,033/- प्रति माह।
सुनते ही गरीबों-मजदूरों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। उनको लगा जैसे बरसों की आस पूरी हो गयी। जी भर के दुआएं देने लगे केजरीवाल को। पहले बिजली की दर आधी कर दी और पानी मुफ्त कर दिया, फिर अच्छी स्वास्थ्य सेवा, मुफ्त दवाई और जांच के साथ घर के नजदीक कर दिया। और अब वेतन में अप्रत्याशित वृद्धि। एक आम जनता को और क्या चाहिए एक अच्छी, सच्ची और ईमानदार सरकार से ? दरअसल पिछले कुछ सालों से महँगाई बेतहाशा बढ़ती चली जा रही है। दूध, फल, दाल, चावल, नमक, मसाला, सब्जी, मतलब रोजमर्रा की हर एक वस्तु की कीमत बढ़ती ही जा रही है।
सरकारी नौकरी करने वालों के लिए तो वेतन आयोग है, हर साल वेतन वृद्धि होती है, साल में दो बार महँगाई भत्ता भी बढ़ाया जाता है लेकिन निजी संस्थानों में काम करने वालों के पास महँगाई की चक्की में पिसने के अलावा और कोई चारा नहीं। न्यूनतम मजदूरी की वर्तमान दर से इनका काम बिलकुल नहीं चल रहा है और बहुत परेशान हैं ये लोग। ऐसे में केजरीवाल जी की ये घोषणा, मरुस्थल में प्यासे घूम रहे व्यक्ति के लिए मीठे जल के जलाशय की तरह प्रकट हुआ।
लेकिन कुछ लोगों को गरीबों की इस खुशी से बिल्कुल भी खुशी नहीं हुई। कुछ पूंजीपतियों, उद्योगपतियों में बिलकुल निराशा दौड़ गई। अवाक् रह गए ये लोग। पता नहीं, गरीबों की खुशी में इनको क्या परेशानी दिख रही है। लगे इसका विरोध करने। तरह-तरह के तर्क भी दे रहे हैं, इस वृद्धि को रोकने के लिए। कह रहे हैं की मंदी का दौर है काम धंधा चौपट हो जाएगा। गरीब को थोड़ा ज्यादा मिल जाएगा तो इनका धंधा चौपट हो जाएगा ? आजादी के बाद से ही गरीब और गरीब एवं अमीर और अमीर होता जा रहा है।
मजदूर अपनी पूरी जिंदगी किराये के मकान, झुग्गियों में गुजार देता है और मालिक की कोठी और फैक्ट्री एक से बढ़कर दो तीन चार होती जाती है। जो मजदूर अपने खून पसीने की मेहनत की बदौलत मालिक के व्यापार को आगे बढ़ाता है उसके वेतन में थोड़ी सी वृद्धि से क्या अर्थ-व्यवस्था हिल जायेगी ? हड़ताल और बंद की भी धमकी दी जा रही है। लेकिन ये केजरीवाल और उसकी सरकार है। आम आदमी का साथ और दुआ लेकर बनी है ये सरकार। केजरीवाल जी अपने किसी भी फैसले से पलटने वाले व्यक्ति नहीं हैं और गरीबों-मजदूरों को एक अच्छी जिंदगी और सम्मान-जनक आय दिलाकर ही रहेंगे।
पूंजीपतियों और उद्योगपतियों को भी चाहिए कि अपना दिल थोड़ा और बड़ा करे एवं सरकार के इस फैसले को खुशी खुशी स्वीकार करे।
Janaab pehle yeh apne blog par se Nispaksh Vichaar ka taga hatayie, knuki puri duniya ko pataa hai ki vichaar kitne nispaksh hain....
जवाब देंहटाएंOr rahi baat gareebi, punji pati, toh yeh jo aap blog likh rahe hai yeh google bhi yeh punjipati ka hi hai...internet bhi or laptop bhi, ho sakta hai kaam bhi kisi punjipati ke liye kar rahe ho.... gyaan dena ho toh chale aate hai saari punji pati or gareebi lekar...
जवाब देंहटाएंAb suniye aapke blog or kejriwal ke pagalpan ka par gyaan...ab mai apni company mai 4 10,000 wale vyakti ki jagah do 15,000 wale rakhunga...knuki mujhe bhi operation badhane ke liye paise chahiye, or woh Kejriwal nahi denge...
जवाब देंहटाएंToh iss kadam se unhone do logon ke naukri cheen li, or meri jaisi nayi company itne paise dena afford nahi kar sakti toh ho sakta hai teen apni naukari kho de....ab us teen aadmi ki zimmedari Ak lenge ya aap lenge janaab...
knuki 2 akushal or ardh kuchal aadmi se mai 10,500 raupaye ek din ka kamaa sakta hun,, yaani mahine ka kareeb 1,75000 se 2,0000 agar mai 60,000 sirf salary site par janaa anaa or office expense nikal kar...mere haath mai aayega tambura... or kuch din baad karni padegi company band... toh inn chaar logon kaa lega zimmedari...
पहले तो कमेंट करने के लिए मेरा धन्यवाद स्वीकार कीजिये। रही बात वेतन देने की, क्या आपको लगता है कि मात्र 10,000/- रुपये प्रति महीने वेतन पाने वाला व्यक्ति अपने परिवार का भरण पोषण कर सकता है ? क्या सम्मानपूर्वक जिंदगी व्यतीत करने के लिए 10,000/- प्रति महीने काफी हैं। यदि हाँ, तो कृपया इन 10,000/- रुपये को शिक्षा, मकान, भोजन, कपडे, दवा, आतिथ्य-सत्कार जैसे मदों पर कितना और कैसे खर्च करें बता दीजिये। गरीबों पर बड़ा अहसान होगा आपका।
हटाएंमेरा पूंजीपतियों से विरोध कदापि नहीं है। सिर्फ उनकी आलोचना कर रहा हूँ जो गरीबों को उनका वाजिब हक़ देने से भी इंकार कर रहे हैं।