1 अगस्त, 2016
उत्तर प्रदेश के सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को अब सरकारी बंगला खाली करना पड़ेगा। अभी-अभी माननीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया है। उत्तर प्रदेश में 1997 में ही पूर्व मुख्यमंत्री आवास कानून बना था। राजनीति में स्वार्थ इतनी भर गयी है कि जिसको भी मौका मिलता है अपने लिए, अपने पूरे परिवार के लिए तमाम तरह की सुख-सुविधा जुटाने में जुट जाता है। इसके लिए कानून बदलने या फिर नया कानून बनाने की भी जरूरत पड़े तो इससे नहीं हिचकते कुछ लोग। सिर्फ बहुमत होना चाहिए, नैतिकता का कोई तकाजा नहीं। ऐसा नहीं है कि सारे राजनेता स्वार्थी हैं, बहुतों ने अपनी जिंदगी बदहाली में गुजारी है। लेकिन ऐसे लोग हैं ही कितने ?
वर्तमान मुख्यमंत्री को तो सब तरह की सुविधा मिलती ही थी। लेकिन सत्ता हमेशा थोड़े ही न रहती है। अब एक बार विलासिता की आदत पड़ जाए तो छूटेगी थोड़े न ? पद से हटने के बाद भी जीवन भर बंगले की सुविधा मिलती रहे इसके लिए कानून ही बना दिया उत्तर प्रदेश सरकार ने। आम तौर पर कोई भी बिल हो, कितना भी जनता के हित से जुड़ा हो, विपक्ष सरकार से सहमत नहीं होता। लेकिन ज्योंही विधायकों, मंत्री, मुख्यमंत्री या पूर्व मुख्यमंत्री को नई सुविधा देने या वेतन-भत्ते बढ़ाने का बिल हो, पक्ष- विपक्ष सब साथ हो जाते हैं। विपक्ष तो प्रस्तावित सुविधा को नाकाफी बताते हुए और बढ़ाने के सुझाव भी दे देता है कई बार बहस के दौरान। बिना मत विभाजन के ख़ुशी-ख़ुशी ध्वनि मत से बिल पारित भी हो जाता है।
अब इनके जेब से थोड़े न कुछ जाना है ? जनता के पैसे पर सारे खर्च होते हैं इनके। गाड़ी, बंगला, वेतन-भत्ता, सब कुछ जनता की टैक्स के पैसे से ही तो होता है। जब खुद के पैसे नहीं लगते हो तो जितनी भी सुविधा दे दो कम पड़ जाते हैं। वो तो भला हो गैर सरकारी संस्था का जिसने न्यायालय में यह याचिका दायर की थी और जिसके कारण माननीय सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला आया है। अब 2 महीने के अंदर में इन पूर्व मुख्यमंत्रियों को जिनमें केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, सांसद मुलायम सिंह, सांसद मायावती शामिल हैं, को सरकारी बंगलो को खाली करना पड़ेगा।
अब जरूरत इस बात कि है कि कोई संस्था जन-प्रतिनिधियों के भारी भरकम वेतन, भत्ते, आवास, गाड़ी एवं विलासिता पूर्ण सुविधाओं के मुफ्त उपयोग को ख़त्म या कम करने के लिए एक याचिका माननीय न्यायालय में दायर कर दे। ये लोग अपने से अपनी सुविधा तो कम करने से रहे। जब समाजसेवा करने के लिए आये हो तो निःस्वार्थ करो न, इतनी सुविधा किस लिए ?
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