चौंकने की बात नहीं है। एक और तुगलकी आदेश आ गया है बिहार सरकार का। आखिर बिहार सरकार समझती क्या है शिक्षकों को ? शिक्षकों से गैर-शिक्षण कार्य तो करवाये ही जाते थे। मसलन, मतदाता सूची का पुनरीक्षण कार्य भी शिक्षक करेंगे, जनगणना का कार्य भी शिक्षक ही करेंगे। जब मतदान होगा तो इसके लिए भी अन्य सरकारी कर्मचारियों के साथ -साथ इनकी सेवा भी ली जाएगी। इसके साथ-साथ अन्य कोई कार्य भी होगा तो शिक्षक को ही करना है। और हाँ, इन सबके साथ-साथ गुरु जी, आपको बच्चों को शिक्षा तो देना ही है।
बिहार में जब से मध्याह्न भोजन बनाने का कार्य स्कूल में ही करवाने का फैसला लिया गया है, तब से इसकी जिम्मेदारी भी प्रधान-शिक्षक की ही हो गयी है। अब माध्यमिक विद्यालय में कोई चपरासी तो होता नहीं है, तो गुरु जी आपको ही सब्जी, मसाला खरीद कर लाना होगा। हाँ, चावल जरूर मुहैया कराया जाएगा आपको। हर दूसरे तीसरे-दिन कोई न कोई सूचना अधिकारियों को चाहिए होती है। ये भी गुरू जी ही तैयार करें। इतना सब करने के बाद शिक्षण कार्य में कोई बाधा या रुकावट नहीं आनी चाहिए गुरु जी।
आपके ऊपर देश के भविष्य के निर्माण की जिम्मेदारी है, इसको आपको बहुत कुशलता से निभाना होगा। अब इतने सारे गैर-शिक्षण कार्य करने के बाद गुरु जी के पास कितना समय और कितनी ऊर्जा बचेगी कि वो शिक्षण कार्य में लगाएंगे। लेकिन सरकार का आदेश है, पालन करना तो पड़ेगा ही। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने आते ही निर्णय लिया कि शिक्षकों को किसी भी गैर-शिक्षण कार्यों में नहीं लगाया जाएगा। बस, इसी आदेश के साथ दिल्ली में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति की शुरुआत हो गयी। लेकिन बिहार सरकार शिक्षक और शिक्षा के महत्त्व को गंभीरता से नहीं समझ रही है।
कोई भी काम हो, करवा लो शिक्षकों से ही। आखिर शिक्षा को इतने हलके में क्यों ले रही है बिहार सरकार ? इतना सब क्या कम था जो महीने के शुरुआत में ही एक नया तुगलकी आदेश ले आयी बिहार सरकार ? अब इस आदेश के मुताबिक अगर किसी विद्यालय में छात्रों की उपस्थिति 75% से कम हुई तो प्रधान-शिक्षक और शिक्षक का परम कर्तव्य है कि अनुपस्थित छात्र-छात्राओं के अभिभावक से मिले और बच्चे को विद्यालय में लाए। अब ये काम किस समय करे गुरूजी ? अगर स्कूल के समय करे तो बच्चों को कौन पढाये ? अगर स्कूल के समय के बाद करे, तो क्यों करे ? क्या इस काम के लिए गुरू जी को अतिरिक्त वेतन मिलेगा ?
अगर तीन बार निरीक्षण के दौरान विद्यार्थियों की उपस्थिति 75% से कम पायी जाती है, तो प्रधान-शिक्षक और शिक्षकों के वेतन से निरीक्षण के दिन का वेतन काटा जाएगा। अब क्या करे गुरु जी ? विद्यालय में रहकर उपस्थित विद्यार्थियों को शिक्षा दे या घर-घर जाकर लोगों को समझाए कि आप अपने बच्चों को विद्यालय भेजिए। नहीं भेजियेगा तो हमारा वेतन कट जाएगा। सरकार इन सब कामों के लिए एक पद क्यों नहीं सृजित कर देती ? सुना है, बिहार के कुछ स्कूलों में टोला-सेवक का भी एक पद है।
क्यों नहीं टोला-सेवक को इस बात की जिम्मेदारी दे दी जाती है कि विद्यालय में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति को सुनिश्चित करे ? विद्यालय प्रबंध समिति में भी बहुत से लोग होंगे, क्यों नहीं उन्ही को इसकी भी जिम्मेदारी दे देती है सरकार ? लेकिन नहीं, वेतन तो गुरु जी को ही मिलता है इसलिए सारे काम गुरूजी ही करेंगे। क्यों नहीं सरकार सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर बढाती है ? किसी भी अभिभावक को अपने बच्चों को कहीं न कहीं पढ़वाना ही है। उनको जहाँ शिक्षण-स्तर अच्छा लगेगा वही अपने बच्चों को भेजेंगे। लेकिन, इतना सोचने समझने की फुर्सत किसको है ? प्रधानमंत्री बनने की तैयारी से फुर्सत मिले, तब न ये सब सोचे नीतीश जी।
आपके ऊपर देश के भविष्य के निर्माण की जिम्मेदारी है, इसको आपको बहुत कुशलता से निभाना होगा। अब इतने सारे गैर-शिक्षण कार्य करने के बाद गुरु जी के पास कितना समय और कितनी ऊर्जा बचेगी कि वो शिक्षण कार्य में लगाएंगे। लेकिन सरकार का आदेश है, पालन करना तो पड़ेगा ही। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने आते ही निर्णय लिया कि शिक्षकों को किसी भी गैर-शिक्षण कार्यों में नहीं लगाया जाएगा। बस, इसी आदेश के साथ दिल्ली में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति की शुरुआत हो गयी। लेकिन बिहार सरकार शिक्षक और शिक्षा के महत्त्व को गंभीरता से नहीं समझ रही है।
कोई भी काम हो, करवा लो शिक्षकों से ही। आखिर शिक्षा को इतने हलके में क्यों ले रही है बिहार सरकार ? इतना सब क्या कम था जो महीने के शुरुआत में ही एक नया तुगलकी आदेश ले आयी बिहार सरकार ? अब इस आदेश के मुताबिक अगर किसी विद्यालय में छात्रों की उपस्थिति 75% से कम हुई तो प्रधान-शिक्षक और शिक्षक का परम कर्तव्य है कि अनुपस्थित छात्र-छात्राओं के अभिभावक से मिले और बच्चे को विद्यालय में लाए। अब ये काम किस समय करे गुरूजी ? अगर स्कूल के समय करे तो बच्चों को कौन पढाये ? अगर स्कूल के समय के बाद करे, तो क्यों करे ? क्या इस काम के लिए गुरू जी को अतिरिक्त वेतन मिलेगा ?
अगर तीन बार निरीक्षण के दौरान विद्यार्थियों की उपस्थिति 75% से कम पायी जाती है, तो प्रधान-शिक्षक और शिक्षकों के वेतन से निरीक्षण के दिन का वेतन काटा जाएगा। अब क्या करे गुरु जी ? विद्यालय में रहकर उपस्थित विद्यार्थियों को शिक्षा दे या घर-घर जाकर लोगों को समझाए कि आप अपने बच्चों को विद्यालय भेजिए। नहीं भेजियेगा तो हमारा वेतन कट जाएगा। सरकार इन सब कामों के लिए एक पद क्यों नहीं सृजित कर देती ? सुना है, बिहार के कुछ स्कूलों में टोला-सेवक का भी एक पद है।
क्यों नहीं टोला-सेवक को इस बात की जिम्मेदारी दे दी जाती है कि विद्यालय में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति को सुनिश्चित करे ? विद्यालय प्रबंध समिति में भी बहुत से लोग होंगे, क्यों नहीं उन्ही को इसकी भी जिम्मेदारी दे देती है सरकार ? लेकिन नहीं, वेतन तो गुरु जी को ही मिलता है इसलिए सारे काम गुरूजी ही करेंगे। क्यों नहीं सरकार सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर बढाती है ? किसी भी अभिभावक को अपने बच्चों को कहीं न कहीं पढ़वाना ही है। उनको जहाँ शिक्षण-स्तर अच्छा लगेगा वही अपने बच्चों को भेजेंगे। लेकिन, इतना सोचने समझने की फुर्सत किसको है ? प्रधानमंत्री बनने की तैयारी से फुर्सत मिले, तब न ये सब सोचे नीतीश जी।
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