27 जुलाई, 2016
दिल्ली में कल से ऑटो टैक्सी की हड़ताल शुरू हो गयी है। लोगों को बहुत परेशानी हो रही है। पहले ऑटो टैक्सी वाले परेशान थे। ज्यादातर ऑटो वालों की परेशानी थी कि पुलिस वाले उनको बेवजह परेशान करते हैं, अवैध वसूली करते हैं। नयी सरकार आने के बाद से पुलिस की दखलंदाजी में बहुत कमी आई है और अवैध वसूली भी नहीं हो रही है। इस तरह की शिकायत ख़त्म हो गयी है अब उनकी। पहले बार-बार पेट्रोल के दाम बढ़ने से भी इनको परेशानी थी, कहते थे पेट्रोल के दाम तो बढ़ जाते हैं लेकिन किराया नहीं बढ़ते हैं। इसके लिए ये लोग हड़ताल करते थे और किराया बढ़वा कर ही दम लेते थे।
अब पेट्रोल के बदले दिल्ली में सीएनजी से ऑटो टैक्सी चलने लगी है, जिसका दाम पेट्रोल के मुकाबले बहुत ही कम है। लेकिन इनका किराया कम नहीं हुआ। अगर लागत बढ़ने के कारण किराया बढ़ता है तो लागत घटने पर किराया घटाने के लिए इन्होंने कोई अनुरोध क्यों नहीं किया, हड़ताल भी नहीं किया। जनता ने भी हड़ताल नहीं किया इनके खिलाफ कि किराये कम करो। जनता सब कुछ सह लेती है। या फिर सहने की आदी हो चुकी है।
अब ऑटो टैक्सी वालों को ऐप बेस्ड ऑटो टैक्सी जैसे की ओला उबेर से परेशानी हो रही है। कह रहे हैं कि उनको हटाओ। क्यों हटा दें भाई? अगर वो गैर-कानूनी ढंग से परिचालन कर रहे हैं तो कानून बनाना सरकार का काम है। अगर वो किसी कानून का उल्लंघन कर रहे हैं तो उनको दंड देना, चालान करना सरकार या पुलिस का काम है। ये तो ऐसे ही हो गया कि रेहड़ी-पटरी वाले कहें कि दुकानों को हटाओ, दुकान वाले कहें कि मॉल्स को बंद करो। सुना है कि इनको बैटरी रिक्शा से भी परेशानी है।
कल से ही जनता परेशान है इनके हड़ताल से। लेकिन इनको जनता की परेशानी से क्या मतलब ? जनता तब भी खुश नहीं थी इनसे, जब इनकी हड़ताल नहीं थी। शायद ही कोई ऑटो वाला होगा जो मीटर से चलने को तैयार होता है, वरना ज्यादातर तो मनचाहे पैसे मांगते हैं। ज्यादातर रूट्स पर जाने से मना कर देंगे। इनकी मनमानियों से तंग आये लोगों ने ही ऐप बेस्ड ऑटो टैक्सी की सेवा पसंद की है और इनके वजह से ही ये सेवा लोकप्रिय भी हो रही है। उनके साथ ऐसा कुछ नहीं है, जिधर कहो जाने को जैसे तैयार ही बैठे रहते हैं। अच्छा डिस्काउंट भी देते हैं। उनके रेट भी ज्यादा नहीं है, न ही वो अतिरिक्त पैसे मांगते हैं ।
दरअसल इनकी परेशानियों की मुख्य वजह है कि अब इनकी मनमानियाँ नहीं चल रही है। दिल्ली सरकार का मानना है कि आम ऑटो टैक्सी वाले तो इनकी हड़ताल में शामिल ही नहीं होना चाहते। सरकार का यह भी कहना है कि ऑटो टैक्सी वालों को धमकी दी जा रही है कि अगर वो सड़को पर आये तो उनके ऑटो की छत ब्लेड से काट दी जाएगी जिसकी कीमत लगभग 5000 रुपये होती है। मतलब कि ऑटो टैक्सी वालों को कोई परेशानी नहीं है बल्कि उनसे जबरदस्ती हड़ताल करवाई जा रही है चंद लोगों द्वारा।
कल न्यूज चैनेल पर बहस में ऑटो टैक्सी यूनियन के लीडर के तेवर देखकर लग रहा था कि वो सरकार की बात सुनने को ही तैयार नहीं है, सरकार ने तो आज की मीटिंग भी रखी हुई है यूनियन के साथ। देखते हैं क्या परिणाम निकलता है। लेकिन अगर यह हड़ताल ज्यादा दिनों तक चलती है तो दिल्ली की जनता को परेशानी न हो इसके लिए जल्द से जल्द सरकार को वैकल्पिक व्यवस्था भी करनी चाहिए।
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