21 जुलाई, 2016
कल भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश में उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती जी के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणी करके एक नए विवाद को जन्म दे दिया। इसकी खूब निंदा हुई, मायावती जी ने राज्यसभा में इसका कड़े शब्दों में विरोध जताया। इसके बाद उनको पार्टी के सभी पद से हटा दिया गया। फिर भारतीय जनता पार्टी से भी उनको निकाल दिया गया है। उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ है। लेकिन फिर भी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। आज बसपा के कार्यकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश में विरोध प्रदर्शन किया।
दयाशंकर सिंह का बयान निश्चित रूप से निंदनीय है। लेकिन ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी नेता ने नारी अपमान सम्बन्धी बयान दिया है। अतीत में भी बहुत से नेताओं ने शर्मसार करने वाले बयान दिए हैं। ज्यादा दिन नहीं बीते जब मध्यप्रदेश के कई बार मुख्यमंत्री रह चुके वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने एक महिला सांसद मीनाक्षी नटराजन को "सौ टंच माल" कहा था। समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह ने कहा था कि चार लोग मिलकर एक लड़की का रेप कर ही नहीं सकते। उन्होंने रेप के मामले में ये भी कहा था कि लड़के हैं, गलती हो जाती है।
लालू प्रसाद जब बिहार के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने कहा था कि बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गाल की तरह बना देंगे। अच्छी सड़क की उपमा देने के लिए उन्हे अभिनेत्री का गाल ही मिला था ? पिछले ही साल जनता दल यूनाइटेड के तत्कालीन अध्यक्ष शरद यादव ने तो राज्य सभा में इन्शुरन्स बिल पर बहस में साउथ इंडिया की औरतों के रंग पर ही विवादित बयान दे दिया था। सोशल मीडिया में चल रही खबरों की माने तो आज़म खान ने कहा था कि रामपुर में नाचने वाली आम्रपाली भी सांसद बन गयी थी।
असम के कांग्रेसी नेता नीलमणि सेन डेका ने तो केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी पर ही भद्दी टिप्पणी कर दी थी। उन्होंने कहा था कि बहुत से लोग स्मृति ईरानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी पत्नी बताते हैं। कितना निर्लज्जतापूर्ण बयान है ये ? अभी इसी महीने जब स्मृति ईरानी जी का विभाग बदल कर कपडा मंत्रालय किया गया तो जदयू के नेता ने भद्दी टिप्पणी कर दी। जदयू के राज्य सभा सांसद अली अनवर ने कहा कि अच्छा है उनको कपड़ा मंत्रालय मिल गया, अब वो अपना तन ढक सकेंगी। कितना ओछा बयान है ये ? क्या मतलब है इसका ? स्मृति ईरानी जी को कपड़ा मंत्रालय मिलेगा तभी वो अपना तन ढक सकेंगी ?
ये अलग बात है कि इन सब मामलों में बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ी थी। पीड़ित लोग सिर्फ निंदा करके या फिर बयानबाजों की क्षमा याचना से ही संतुष्ट होकर मामला ख़त्म कर दिया होगा। लेकिन फिर भी, क्या जरूरी है नेताओं को ऐसे बोल बोलना ? चुप भी तो रहा जा सकता है ? क्या मर्यादित शब्द ख़त्म हो गए शब्द कोष से ? राजनीतिक विरोध एवं प्रतिद्वंद्विता अपनी जगह, लेकिन नेताओं को व्यक्तिगत आक्षेप तो नहीं करने चाहिए।
लालू प्रसाद जब बिहार के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने कहा था कि बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गाल की तरह बना देंगे। अच्छी सड़क की उपमा देने के लिए उन्हे अभिनेत्री का गाल ही मिला था ? पिछले ही साल जनता दल यूनाइटेड के तत्कालीन अध्यक्ष शरद यादव ने तो राज्य सभा में इन्शुरन्स बिल पर बहस में साउथ इंडिया की औरतों के रंग पर ही विवादित बयान दे दिया था। सोशल मीडिया में चल रही खबरों की माने तो आज़म खान ने कहा था कि रामपुर में नाचने वाली आम्रपाली भी सांसद बन गयी थी।
असम के कांग्रेसी नेता नीलमणि सेन डेका ने तो केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी पर ही भद्दी टिप्पणी कर दी थी। उन्होंने कहा था कि बहुत से लोग स्मृति ईरानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी पत्नी बताते हैं। कितना निर्लज्जतापूर्ण बयान है ये ? अभी इसी महीने जब स्मृति ईरानी जी का विभाग बदल कर कपडा मंत्रालय किया गया तो जदयू के नेता ने भद्दी टिप्पणी कर दी। जदयू के राज्य सभा सांसद अली अनवर ने कहा कि अच्छा है उनको कपड़ा मंत्रालय मिल गया, अब वो अपना तन ढक सकेंगी। कितना ओछा बयान है ये ? क्या मतलब है इसका ? स्मृति ईरानी जी को कपड़ा मंत्रालय मिलेगा तभी वो अपना तन ढक सकेंगी ?
ये अलग बात है कि इन सब मामलों में बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ी थी। पीड़ित लोग सिर्फ निंदा करके या फिर बयानबाजों की क्षमा याचना से ही संतुष्ट होकर मामला ख़त्म कर दिया होगा। लेकिन फिर भी, क्या जरूरी है नेताओं को ऐसे बोल बोलना ? चुप भी तो रहा जा सकता है ? क्या मर्यादित शब्द ख़त्म हो गए शब्द कोष से ? राजनीतिक विरोध एवं प्रतिद्वंद्विता अपनी जगह, लेकिन नेताओं को व्यक्तिगत आक्षेप तो नहीं करने चाहिए।
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