8 जुलाई, 2016
आज कल पुलिस और सरकार धर्मगुरु जाकिर नाईक के वीडियो को बारीकी से देख रही है और उसका अध्ययन कर रही है। उसके खिलाफ सबूत जुटा रही है, लेकिन अभी तक कोई नोटिस या गिरफ़्तारी नहीं हुई है। पुलिस आराम से काम करती है, तसल्ली से करती है। करना भी चाहिए, हड़बड़ी में कोई ऐसा निर्णय नहीं ले लेना चाहिए या ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे बाद में कोई परेशानी हो। लेकिन अगर मामला आम आदमी पार्टी और उसके नेता से जुड़ा हो तो पुलिस या सरकार इतने संयम और धीरज से काम क्यों नहीं ले पाती ?
सोमनाथ भारती जी की पत्नी ने उनपर घरेलु हिंसा और मारपीट के आरोप लगाए और दिल्ली पुलिस निकल पड़ी उनको पूरी तत्परता से ढूँढ़ने। ऐसा खोज अभियान चलाया गया जैसे कोई बहुत बड़े आतंकवादी को ढूँढा जा रहा है। वैसे जब उनकी जमानत याचिका न्यायालय से ख़ारिज हो गयी तो उन्होंने खुद ही आत्मसमर्पण कर दिया था।
पिछले दिनों दिनेश मोहनिया जी पर किसी बुजुर्ग को थप्पड़ मारने का आरोप लगा। बीच प्रेस कांफ्रेंस से दिल्ली पुलिस उनको गिरफ्तार कर के ले गई। तस्वीरों को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे किसी दुर्दांत अपराधी को छापा मारकर गिरफ्तार करके ले जाया जा रहा हो। उनके दोनों तरफ एक एक पुलिस वाले हाथ को पकड़ कर ले जा रहे थे, मानो उनको कसकर नहीं पकड़ा गया तो वो गिरफ्त से भाग जायेंगे। किसी जनप्रतिनिधि को ऐसे गिरफ्तार किया जाता है ?
अभी थोड़े दिन पहले ही पंजाब में धार्मिक ग्रन्थ के अपमान के आरोपी ने नरेश यादव जी का नाम ले दिया कि उनके कहने पर उसने ऐसा किया, हो गयी पंजाब पुलिस उनके खिलाफ भी सक्रिय। कहने का मतलब कि किसी भी मामले में अगर आम आदमी पार्टी का नाम जुड़ा हो तो पुलिस की सक्रियता कई गुणा बढ़ जाती है।
अगर जाकिर नाईक की जगह किसी आम आदमी पार्टी के नेता या कार्यकर्त्ता का नाम होता तो क्या पुलिस इतनी तसल्ली से काम करती ? झट से उसको गिरफ्तार कर नहीं कर लेती ?
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