15 जुलाई, 2016
कल उत्तरप्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव 2017 के लिए कांग्रेस ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया। मतलब कि कांग्रेस उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। अब सोचने वाली बात ये है कि शीला जी के नेतृत्व में दिल्ली में कांग्रेस को अभूतपूर्व हार का सामना करना पड़ा, जबकि उनके पास विगत 15 वर्षों के शासन काल में किए गए कामों की लम्बी फेहरिस्त हो सकती थी। लेकिन राजनीति के नौसिखिए, अरविन्द केजरीवाल ने देश की सबसे पुरानी एवं सत्ता के लम्बे अनुभव वाली पार्टी को धराशायी कर दिया।
अब शीला जी उत्तर प्रदेश के लोगों को क्या कहेंगी, कि मैंने दिल्ली में 15 साल शासन करके दिल्ली का खूब विकास किया, अब उत्तर प्रदेश की जनता की सेवा करने का मौका दीजिए ? जनता पूछेगी नहीं कि आपने अगर इतना ही काम किया था तो दिल्ली में आपकी पार्टी को इतनी करारी हार क्यों मिली, और तो और आप अपनी सीट भी नए नवेले केजरीवाल जी से क्यों हार गयी ? क्या उत्तर प्रदेश की जनता उनसे पूछेगी नहीं कि आप तो कहती थी कि दिल्ली में यूपी-बिहार के लोगों की वजह से ही अव्यवस्था है, फिर आपको हम पर इतना प्यार क्यों आ रहा है , हम आपको क्यों वोट दें ?
अब कांग्रेस द्वारा प्रचारित किया जा रहा है कि शीला जी उत्तर प्रदेश की बहू है। जब तक वो दिल्ली की मुख्यमंत्री रही, कभी इस बात को नहीं कहा। दिल्ली को ही अपना घर बताती रही। राजनीति में तो यही होता है, जहाँ जाओ, जहाँ से चुनाव लड़ना हो वहाँ से अच्छा रिश्ता निकाल लो। कहो कि मैं यहाँ की बहु हूँ, यहाँ का बेटा हूँ, या फिर कोई रिश्ता न निकले तो कहो, "मित्रों, यहाँ से मेरा पुराना रिश्ता है"। जिस व्यवसाय के व्यक्ति से मिलो , उससे कहो कि मैं बचपन से यही बनना चाहता था।
लेकिन क्या जनता इस रिश्ते-नाते की राजनीति को स्वीकार करेगी ? सोनिया जी लगभग हर चुनाव में कहती है कि मैं उत्तरप्रदेश की बहू हूँ, मैं इंदिरा गांधी की बहू हूँ। लोकसभा में कुछ सीट तो कांग्रेस को मिल भी जाया करती थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में तो बारी-बारी से सपा, बसपा की ही सरकार बन जाती है। इस बार तो लोकसभा चुनाव में भी कमाल हो गया, सिर्फ परिवार वाले ही जीत पाए।
दरअसल इस बार कांग्रेस ने जाति कार्ड खेलने की कोशिश की है। शीला जी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाकर ब्राह्मण वोट को अपने साथ लाने की कोशिश की जा रही है, जो कि पिछले कुछ चुनाव से बसपा के वोट बैंक बन गए हैं। बसपा के दलित वोट बैंक में भी सेंधमारी करने से नहीं चूक रही है, कांग्रेस। राज बब्बर जी को उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष इसी लिए तो बनाया गया है शायद। क्योंकि किसी न्यूज चैनल पर सुना कि राज बब्बर दलित हैं। इस बात को खूब प्रचारित कर रही है कांग्रेस। इससे पहले तो हमें उनकी जाति का पता भी नहीं था, और कोई जरुरत भी नहीं थी।
जरुरत तो अभी भी नहीं है हमें, लेकिन कांग्रेस को बहुत जरूरत है अपने इन दोनों नेता की जाति को प्रचारित करने की। यूपी और बिहार में जातिगत राजनीति होती है, यह बात किसी से छुपी नहीं है। हर पार्टी जातिगत समीकरण देखकर ही टिकट का बँटवारा करती है। कांग्रेस भी इन दोनों नेताओं को आगे करके ये सन्देश देना चाहती है कि ये दलितों और ब्राह्मणो, हमने तुम्हारी जाति के नेताओं को आगे किया है। अब तुम्हारी जाति का विकास हम करेंगे, हमारी नेता को 15 साल के शासन का तजुर्बा भी है।
वैसे, अगर कांग्रेस को किसी ब्राह्मण नेता को ही आगे करना था तो रीता बहुगुणा जोशी जी क्या बुरी थी ? उत्तर प्रदेश की अध्यक्ष भी रह चुकी है।शीला जी पर तो दिल्ली में कॉमनवेल्थ घोटाले के आरोप भी लगे हैं, पानी टैंकर घोटाले में भी आरोपी हैं। इस मामले में तो उनको शायद नोटिस भी भेजा जा चूका है या फिर भेजा जा सकता है। हो सकता है कांग्रेस को लगता हो कि उत्तर प्रदेश की जनता को दिल्ली के बारे में क्या पता ? लेकिन क्या जनता इस बहलावे में आएगी, और कांग्रेस को सत्ता सौंप देगी ? वैसे भी जब तक कोई ईमानदार पार्टी प्रदेश में चुनाव लड़ने आगे नहीं आती तब तक जनता की तो हार ही है, चाहे मुख्यमंत्री कोई भी बने।
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