10 जुलाई, 2016
हम बचपन से ही सामान्य ज्ञान और नागरिक की पुस्तकों में पढ़ते रहे हैं कि राष्ट्रपति जी हमारे देश के प्रधान होते हैं और उनका वेतन सरकार के किसी भी व्यक्ति से ज्यादा होता है। लेकिन सुना है कि कुछ लोग ऐसे हैं जिनको राष्ट्रपति जी से भी ज्यादा तनख्वाह मिलती है। इसमें कोई चौंकने वाली बात नहीं है। फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया में करीब 370 ऐसे मजदूर हैं जो महामहिम से भी ज्यादा तनख्वाह पाते हैं। कुल 4,50,000 (साढ़े चार लाख) रुपए तनख्वाह मिलती है 370 विभागीय मजदूरों को। क्या इसमें किसी बड़े घोटाले की बू नहीं आ रही है ?
दिल्ली के नगर निगम में भी पिछले कुछ सालों से "घोस्ट एम्प्लॉयी" नामक शब्द चर्चा में है। इसका आशय ऐसे लोगो से है जो हर महीने तनख्वाह तो पाते हैं लेकिन, जमीनी स्तर पर कहीं नहीं दीखते। हमने बिहार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में करोड़पति चपरासियों के बारे में भी सुना और पढ़ा है। लेकिन ये तो हुआ गैर-कानूनी मामला। परन्तु भारतीय खाद्य निगम के मजदूर तो कानूनी रूप से इतनी तनख्वाह ले रहे हैं। क्यों ले रहे हैं किसी को पता नहीं। या पता भी होगा तो इसको जस्टिफाई नहीं कर पा रहे हैं।
मजे की बात ये है कि ये मजदूर नवाबी ठाट में रह रहे हैं। खुद काम नहीं करते बल्कि 7,000 - 8,000 रुपये प्रति माह पर मजदूर रखे हैं जो इनके बदले काम करते हैं और पूरी तनख्वाह इनके जेब में जाती है। अब माननीय उच्च्तम न्यायालय के निर्देश पर केंद्र सरकार ने इसको हटाने का फैसला लिया है। लेकिन मुद्दा ये है कि क्या केंद्र सरकार को इस बात का इल्म नहीं था कि ये मजदूर इतनी तनख्वाह ले रहे हैं ? क्या पूरे पैसे सिर्फ इन मजदूरों की जेब में ही जा रहे हैं ?
बहुत मुमकिन है कि इसमें बहुत बड़ा भ्रष्टाचार है। इसी कारण यह बात आज तक छिपी रही। अभी भी माननीय न्यायालय के संज्ञान लेने पर ही केंद्र सरकार इनको हटाने की सोच रही है। वरना ये खेल चलता ही रहता और किसी को पता भी नहीं चलता। अगर सही से नजर रखा जाए तो लगभग हर महकमे में ऐसा गड़बड़ झाला देखने को मिल सकता है। लेकिन इस पर नजर रखे कौन ? जिसको जब तक मलाई मिलती रहती है, आँख बंद किये रहता है। अब तो सिर्फ न्यायपालिका से ही उम्मीद है।
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