3 जून, 2016
बात बहुत पहले की है। जब टीवी की दुनिया में सिर्फ इकलौता सरकारी चैनल ही होता था "दूरदर्शन" । लोगों के पास और कोई विकल्प नहीं था। जो कार्यक्रम पसंद आता उसको देखते थे, नहीं आता तो समय का सदुपयोग किसी और काम में करते थे। अब एक ही चैनल था तो उसी पर समाचार, उसी पर धारावाहिक, उसी पर क्रिकेट मैच और उसी पर रविवार को हिंदी फीचर फिल्म आता था। फीचर क्या क्या मतलब होता है, ये न तो मुझे तब पता था और न ही अभी तक लग पाया है।
जो भी हो, घर में एक टेलीविजन होता था और घर के सारे सदस्य एक साथ बैठकर पसंदीदा कार्यक्रम देखते थे। बिजली की समस्या तो पहले बहुत ज्यादा ही थी। जब हमारे पसंदीदा कार्यक्रम के समय बिजली नहीं होती थी या फिर कार्यक्रम के बीच में चली जाती थी तो बिजली विभाग को जमकर कोसते थे। उसके बाद आया प्राइवेट चैनल का जमाना। अब तो इतने सारे चैनल आ गए और उनके इतने सारे कार्यक्रम कि लोग कन्फ्यूज हो गए कि क्या देखें और क्या छोड़े।
धारावाहिकों के लिए अलग चैनल, समाचार के लिए अलग, सिनेमा के लिए अलग, खेल के लिए अलग। ऐसे चैनलों की संख्या बढ़ती ही जा रही है दिनों दिन। ये चैनल दूरदर्शन से सिर्फ इस मामले में अलग नहीं थे कि वो सरकारी चैनल था और ये निजी चैनल। बल्कि दूरदर्शन एक मुफ्त चैनल था, उपभोक्ताओं को सरकार को कोई पैसा नहीं देना पड़ता था। सिर्फ एक टीवी और एंटीना, वोल्टेज स्टेबलाइजर खरीद लो और देखने लगो कार्यक्रम। लेकिन निजी चैनलों के कार्यक्रम को देखने के लिए केबल कनेक्शन लेना पड़ता था और इसके लिए केबल ऑपरेटर को प्रति माह कुछ निश्चित रकम देनी पड़ती थी।
अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर। जब केबल के जरिए निजी चैनल देखे जाते थे तब कुछ बुद्धिजीवियों ने आवाज उठाई थी कि विदेशों में निजी चैनल अगर उपभोक्ताओं से पैसे लेते हैं तो फिर कार्यक्रमों के दौरान प्रचार नहीं दिखाते। प्रचार सिर्फ मुफ्त चैनल ही दिखाते हैं। ऐसी ही माँग हमारे देश में भी उठने लगी। जब आवाज बुलंद हुई तो चैनलों ने तर्क दिया कि केबल ऑपरेटर्स हमें उपभोक्ताओं की सही संख्या नहीं बताते हैं, मतलब कि ज्यादा कनेक्शन लगाते हैं और हमें कम बताते हैं और उसी के अनुसार हमें पैसे भी देते हैं। हमें सही कमाई नहीं हो रही है, इसलिए हमें अभी प्रचार दिखाने दिया जाए।
उसके बाद इस क्षेत्र में बड़ी क्रांति आई। डायरेक्ट टु होम (DTH) का जमाना आया। इसके लिए DTH सेवा प्रदाता कम्पनी का डिश एंटीना लगाने की जरूरत थी। कहा गया कि DTH कम्पनियाँ विभिन्न चैनलों को मिला कर अलग-अलग चैनल पैक बनायेगी और आपको जो पैक पसंद हो वही लीजिए और उसी के पैसे दीजिए। अभी तो आपको उन सभी चैनलों के पैसे भरने पड़ते हैं जो आप देखते भी नहीं। ये बात अलग यही कि उन दिनों जितने रूपए में सारे चैनल उपलब्ध थे उससे ज्यादा पैसे अभी देने पड़ते हैं कुछ चुने हुए चैनल देखने के लिए। जो डिश एंटीना नहीं लगवाना चाहते उनके लिए केबल के जरिए सेट टॉप बॉक्स लगवाकर केबल ऑपरेटर द्वारा चुने हुए चैनल देखने की सुविधा दी गई।
सेट टॉप बॉक्स के बड़े फायदे बताए गए। इनमें से एक फायदा ये भी था कि इससे चैनलों को अपने वास्तविक उपभोक्ताओं की संख्या जानने की सुविधा होगी और उनके साथ कोई धोखाधड़ी नहीं की जा सकेगी। डिजिटल प्रसारण के भी फायदे बताए गए कि इससे अच्छी पिक्चर क्वालिटी मिलेगी। मतलब कि निजी चैनलों ने अपनी कमाई की व्यवस्था पूरी तरह से चाक-चौबंद कर ली। लेकिन प्रचार दिखाने न दिखाने की बात किसी ने नहीं की अभी तक। दिल्ली में डिजिटल प्रसारण कई सालों से है। लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान नहीं गया, या किसी ने भी ध्यान नहीं दिया।
निजी चैनल्स जमके प्रचार दिखा रहे हैं और सेवा शुल्क के रूप में अच्छे-खासे पैसे भी ले रहे हैं। जनता चुपचाप अपनी जेब खाली किए और इनकी भरे जा रही है। सरकार भी इस पर कुछ बोल नहीं रही है। कहने को तो प्रसार भारती भी है। लेकिन कभी इस बारे में किसी ने भी कुछ करने की जहमत नहीं उठाई। देर से ही सही लेकिन अब वक्त आ गया है कि इस दिशा में आवाज उठाई जाए। उपभोक्ताओं को ही पहल करनी पड़ेगी , क्योंकि सरकार को तो शायद याद भी नहीं है कि ऐसा कोई मुद्दा ही भी है हमारे देश में। और रही बात निजी चैनल्स की, तो वो अपने पाँव पर कुल्हाड़ी क्यों मारेगी ?
जो भी हो, घर में एक टेलीविजन होता था और घर के सारे सदस्य एक साथ बैठकर पसंदीदा कार्यक्रम देखते थे। बिजली की समस्या तो पहले बहुत ज्यादा ही थी। जब हमारे पसंदीदा कार्यक्रम के समय बिजली नहीं होती थी या फिर कार्यक्रम के बीच में चली जाती थी तो बिजली विभाग को जमकर कोसते थे। उसके बाद आया प्राइवेट चैनल का जमाना। अब तो इतने सारे चैनल आ गए और उनके इतने सारे कार्यक्रम कि लोग कन्फ्यूज हो गए कि क्या देखें और क्या छोड़े।
धारावाहिकों के लिए अलग चैनल, समाचार के लिए अलग, सिनेमा के लिए अलग, खेल के लिए अलग। ऐसे चैनलों की संख्या बढ़ती ही जा रही है दिनों दिन। ये चैनल दूरदर्शन से सिर्फ इस मामले में अलग नहीं थे कि वो सरकारी चैनल था और ये निजी चैनल। बल्कि दूरदर्शन एक मुफ्त चैनल था, उपभोक्ताओं को सरकार को कोई पैसा नहीं देना पड़ता था। सिर्फ एक टीवी और एंटीना, वोल्टेज स्टेबलाइजर खरीद लो और देखने लगो कार्यक्रम। लेकिन निजी चैनलों के कार्यक्रम को देखने के लिए केबल कनेक्शन लेना पड़ता था और इसके लिए केबल ऑपरेटर को प्रति माह कुछ निश्चित रकम देनी पड़ती थी।
अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर। जब केबल के जरिए निजी चैनल देखे जाते थे तब कुछ बुद्धिजीवियों ने आवाज उठाई थी कि विदेशों में निजी चैनल अगर उपभोक्ताओं से पैसे लेते हैं तो फिर कार्यक्रमों के दौरान प्रचार नहीं दिखाते। प्रचार सिर्फ मुफ्त चैनल ही दिखाते हैं। ऐसी ही माँग हमारे देश में भी उठने लगी। जब आवाज बुलंद हुई तो चैनलों ने तर्क दिया कि केबल ऑपरेटर्स हमें उपभोक्ताओं की सही संख्या नहीं बताते हैं, मतलब कि ज्यादा कनेक्शन लगाते हैं और हमें कम बताते हैं और उसी के अनुसार हमें पैसे भी देते हैं। हमें सही कमाई नहीं हो रही है, इसलिए हमें अभी प्रचार दिखाने दिया जाए।
उसके बाद इस क्षेत्र में बड़ी क्रांति आई। डायरेक्ट टु होम (DTH) का जमाना आया। इसके लिए DTH सेवा प्रदाता कम्पनी का डिश एंटीना लगाने की जरूरत थी। कहा गया कि DTH कम्पनियाँ विभिन्न चैनलों को मिला कर अलग-अलग चैनल पैक बनायेगी और आपको जो पैक पसंद हो वही लीजिए और उसी के पैसे दीजिए। अभी तो आपको उन सभी चैनलों के पैसे भरने पड़ते हैं जो आप देखते भी नहीं। ये बात अलग यही कि उन दिनों जितने रूपए में सारे चैनल उपलब्ध थे उससे ज्यादा पैसे अभी देने पड़ते हैं कुछ चुने हुए चैनल देखने के लिए। जो डिश एंटीना नहीं लगवाना चाहते उनके लिए केबल के जरिए सेट टॉप बॉक्स लगवाकर केबल ऑपरेटर द्वारा चुने हुए चैनल देखने की सुविधा दी गई।
सेट टॉप बॉक्स के बड़े फायदे बताए गए। इनमें से एक फायदा ये भी था कि इससे चैनलों को अपने वास्तविक उपभोक्ताओं की संख्या जानने की सुविधा होगी और उनके साथ कोई धोखाधड़ी नहीं की जा सकेगी। डिजिटल प्रसारण के भी फायदे बताए गए कि इससे अच्छी पिक्चर क्वालिटी मिलेगी। मतलब कि निजी चैनलों ने अपनी कमाई की व्यवस्था पूरी तरह से चाक-चौबंद कर ली। लेकिन प्रचार दिखाने न दिखाने की बात किसी ने नहीं की अभी तक। दिल्ली में डिजिटल प्रसारण कई सालों से है। लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान नहीं गया, या किसी ने भी ध्यान नहीं दिया।
निजी चैनल्स जमके प्रचार दिखा रहे हैं और सेवा शुल्क के रूप में अच्छे-खासे पैसे भी ले रहे हैं। जनता चुपचाप अपनी जेब खाली किए और इनकी भरे जा रही है। सरकार भी इस पर कुछ बोल नहीं रही है। कहने को तो प्रसार भारती भी है। लेकिन कभी इस बारे में किसी ने भी कुछ करने की जहमत नहीं उठाई। देर से ही सही लेकिन अब वक्त आ गया है कि इस दिशा में आवाज उठाई जाए। उपभोक्ताओं को ही पहल करनी पड़ेगी , क्योंकि सरकार को तो शायद याद भी नहीं है कि ऐसा कोई मुद्दा ही भी है हमारे देश में। और रही बात निजी चैनल्स की, तो वो अपने पाँव पर कुल्हाड़ी क्यों मारेगी ?
bilkul sahi bat hai
जवाब देंहटाएंबात तो सही है लेकिन इस दिशा में काम भी होना चाहिये न.
जवाब देंहटाएंKaam to honi chahiye.. lekin karega kaun???
जवाब देंहटाएंJanta sab kuch kar sakti hai. Janta Free channels ko dekhni shuru kar de to saare paid channels apne aap free ho jaayenge.
हटाएंKaam to honi chahiye.. lekin karega kaun???
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