10 जून 2016
कितने हताश और निराश हो गए हैं भाजपा वाले ? कभी किसी आरोपी को अदालत परिसर में जम के पीट देते हैं तो कभी जनप्रतिनिधि को ही। अभी कल का ही मामला है। दिल्ली नगर निगम की संयुक्त सत्र में कूचा पंडित से आम आदमी पार्टी के नवनिर्वाचित पार्षद श्री राकेश कुमार टोपी पहन कर बैठे थे। इसको लेकर भाजपा के पार्षद से उनकी बहस हो गई। बात इतनी बढ़ गयी कि भाजपा के कुछ पार्षदों ने उनको पीट दिया।
आखिर क्या हो रहा है हमारे देश में ? सत्ता के मद में कितने चूर हो गए हैं भारतीय जनता पार्टी वाले ? हमेशा कानून को हाथ में लेने को तैयार रहते हैं। भाई, टोपी पहन कर निगम की सत्र में भाग लेना जुर्म है क्या ? अगर जुर्म भी है तो भाजपा वाले कौन होते हैं इसकी सजा देने वाले ? इसकी बकायदा शिकायत की जा सकती है सम्बद्ध अधिकारी से। लेकिन भाजपा वालों को कानून और नियम से क्या लेना देना ? ये तो खुद को ही कानून समझते हैं।
दरअसल 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद से दिल्ली में होने वाले हर चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जमीन खिसकती जा रही है। अभी दिल्ली नगर निगम के उप-चुनाव में भी सबसे कम 3 सीटें मिली इस पार्टी को। इससे बुरी तरह से हताश और निराश होकर बौखला गए हैं भाजपा वाले। और इसी हताशा और निराशा में ऐसी उटपटांग हरकतें कर रहे हैं। ये ठीक है कि अभी निगम में भाजपा का बहुमत है और आम आदमी पार्टी के पार्षदों की संख्या मात्र 5 ही है। लेकिन, इसका क्या मतलब ? ज्यादा की संख्या में हैं तो पीट देंगे किसी को ?
दिल्ली विधानसभा में भी भाजपा के 3 सदस्य ही हैं, लेकिन क्या कभी आम आदमी पार्टी के किसी भी विधायक ने सत्ता का घमंड दिखाया ? इनके 3 में से किसी विधायक के साथ बेअदबी की ? राजनीति में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा चलती रहती है और लोकतंत्र के लिए अच्छा भी है। लेकिन प्रतिस्पर्धा स्वस्थ भी तो हो सकती है ? अपनी प्रतिद्वंद्वी पार्टी या उसके नेता को दुश्मन तो नहीं समझना चाहिए। आप आम आदमी पार्टी या उसकी सरकार की आलोचना करो, उसकी नीतियों की आलोचना करो।
लेकिन ये क्या ? दूसरी पार्टी के बढ़ते कद से हताश होकर उसके नेता को पीट देना, कैसी राजनीति है ? इसी पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी जी विपक्ष को विशेष पक्ष कहा करते थे। लेकिन अब कैसी संस्कृति चल पड़ी है इस पार्टी में ? अभी लोकसभा में जितनी सीटें भारतीय जनता पार्टी की है उससे कहीं ज्यादा सीटें 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी को मिली थी। एक तरह से विपक्ष का सफाया ही हो गया था। प्रचण्ड बहुमत मिला था, लेकिन कांग्रेस पार्टी के लोग ऐसी गुंडागर्दी पर तो नहीं उतर आये थे।
अभी राज्यसभा में सरकार अल्पमत में है तो ये आलम है। अगर उधर भी बहुमत मिला होता तो कितने निरंकुश हो जाते भाजपा वाले, ये आसानी से समझा जा सकता है।
0 टिप्पणियाँ:
टिप्पणी पोस्ट करें