30 जून, 2016
अभी थोड़े दिन ही पहले सातवाँ वेतन आयोग की सिफारिश आई है। इसमें 23% वेतन-वृद्धि की बात कही गयी है। लेकिन सुना है कि सरकारी कर्मचारी इससे खुश नहीं हैं और हड़ताल पर जाने की बात कर रहे हैं। ईमानदार कर्मचारियों से मैं पहले ही माफ़ी माँग लेता हूँ। सेना एवं अर्ध-सैनिक बलों पर भी मैं टिप्पणी नहीं कर रहा हूँ। लेकिन अभी जो सरकारी कर्मचारियों का वेतनमान है, क्या वो पर्याप्त नहीं है ? क्या निजी क्षेत्र में इतना वेतन और भत्ता मिलता है ? क्या निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोग मेहनत नहीं करते ?
सरकारी नौकरी आराम, अच्छा वेतन और तरह-तरह की सुख सुविधाओं का उपभोग करने का माध्यम बनकर रह गया है कुछ कर्मचारियों के लिए। कितने सरकारी कर्मचारी हैं जो ईमानदारी पूर्वक 8 घंटे काम करते हैं ? सरकारी कर्मचारियों के देर से कार्यालय पहुँचने एवं शाम को जल्दी ही घर निकल लेने के किस्से आये दिन अख़बारों की सुर्ख़ियों में रहते हैं। मैं नहीं कहता कि सारे कर्मचारी ऐसे हैं लेकिन बहुतायत ऐसे ही लोगों की है। एक बार सरकारी नौकरी लग गई तो उसके बाद काम करो न करो, कैसे भी करो, नियत तिथि को वेतन और नियत समय बाद वेतन वृद्धि होनी ही है।
जो काम करे उसका भी और जो न करे उसका भी समान वेतन-वृद्धि होनी है। मतलब सरकारी नौकरी में वेतन-वृद्धि कार्यकुशलता देखकर नहीं की जाती। हर 6 महीने बाद महँगाई भत्ता बढ़ना है तो सबका एक समान बढ़ना है साल में एक बार वेतन वृद्धि भी सबकी एक समान ही होनी है। निजी संस्थानों में ऐसा नहीं होता। इसलिए निजी कम्पनियाँ सफलता के नए आयाम स्थापित करती है और सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियाँ दिवालिया होती जाती है। सरकारी कर्मचारी के बारे में आम धारणा भी यही है कि ये कार्यालय में अपनी सीट पर कम और पड़ोस के चाय-पान की दूकान पर ज्यादा समय व्यतीत करते हैं।
निजी कंपनियों में टारगेट न पूरा होने का डर रहता है, इसलिए तयशुदा समय से ज्यादा भी काम करते हैं लोग। फिर भी जितनी कमाई सरकारी कर्मचारियों की होती है उतना कभी नहीं कमा पाते हैं ये लोग। कहने को हर राज्य में न्यूनतम मजदूरी और उसके ऊपर से महँगाई भत्ता, चिकित्सा सुविधा, प्रोविडेंट फंड, छुट्टी आदि देने का कानून है। लेकिन इन सब कानूनों का पालन करती ही कितनी कम्पनियाँ है? न्यूनतम मजदूरी भी इतनी नहीं रखी गई है जिसमें सम्मान पूर्वक जिंदगी व्यतीत हो सके।
दूसरी तरफ सरकारी नौकरी में मोटी तनख्वाह, तरह तरह के भत्ते, चिकित्सा सुविधा, आवास सुविधा, तरह तरह की छुट्टियाँ आदि मिलती है। नौकरी जाने का डर भी शायद ही किसी को होता है। इसीलिए तो सरकारी नौकरी की पीछे भागते रहते हैं ज्यादा लोग। सरकारी नौकरी की परीक्षा की तैयारी के लिए जगह-जगह खुले संस्थान एवं उसमें साल दर साल बढ़ती शिक्षार्थियों की भीड़ इसका जीता जागता सबूत है। कहते हैं, सरकारी नौकरी पाना बड़ा मुश्किल काम है लेकिन इसके बाद मजे ही मजे है।
अब इनको 23% वृद्धि पर भी आराम नहीं है और एक हम हैं जो 10% इंक्रीमेंट मिलने पर यूँ नाचते थे मानो पूरी दुनिया क़दमों के नीचे आ गयी हो। ऊपर से ये हड़ताल पर जाने की बात भी कर रहे हैं। हर 1-2 साल पर किसी न किसी राज्य में सरकारी कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने की खबर आती ही रहती है। अब ये हड़ताल पर क्यों न जाएँ ? हड़ताल के दिनों के पैसे तो कटने नहीं इनके और सरकार को भी मजबूर होकर इनकी बात माननी ही पड़ती है। जबकि निजी संस्थानों में तो साफ साफ कहा जाता है कि भई हम तो इतना ही दे सकते हैं बाकि अगली इंक्रीमेंट पर देखेंगे। और इस बीच अगर आपको कहीं अच्छी अपॉर्चुनिटी मिल रही है तो उस पर भी गौर कर लो।
इनको अगर 23% वेतन वृद्धि न मिलकर 0% भी मिले न तब भी इनमें से कोई भी मलाईदार नौकरी छोड़ कर नहीं जाने वाला। अगर हड़ताल के दिनों के पैसे काटने लगे सरकार तो ये हड़ताल भी नहीं करेंगे।
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