31 मई, 2016
सुना है दिल्ली, बहुतों बार बदली। अभी भी बदल रही है। पहले दिल्ली केंद्र-शासित प्रदेश थी, फिर इसको राज्य बनाया गया। अब इसको पूर्ण राज्य बनाने की बात हो रही है। शायद जब से दिल्ली राज्य बनी है, तभी से इसकी मांग हो रही है। हर राजनीतिक पार्टी अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसको पूर्ण राज्य बनाने का वादा करती है, फिर जब सत्ता में आती है तो इसको भूल जाती है। कोई याद भी दिलाता है तो कुछ बहाने बना देती है। बहाने भी ऐसे कि जिसकी राज्य सरकार होती है वो कहते हैं कि केंद्र इस पर गम्भीर नहीं है।
जब केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकार हो तब तो ऐसी बात थोड़ी उचित भी प्रतीत होती है। लेकिन 2004 से 2014 तक जब केंद्र में कांग्रेस-नीत यूपीए की सरकार थी तब उसी दौरान दिल्ली में भी कांग्रेस की ही सरकार थी। उस दौरान अगर राज्य सरकार इस मुद्दे पर गम्भीर होती तो दिल्ली कब का पूर्ण राज्य बन गयी होती। इससे साफ़ पता चलता है कि इस मुद्दे पर सिर्फ राजनीति कर रहे हैं कांग्रेस और भाजपा वाले। अभी कानून-व्यवस्था और जमीन से सम्बंधित विभाग उप-राज्यपाल महोदय के माध्यम से संचालित किए जाते हैं। पूर्ण राज्य होने के बाद ये सब भी राज्य सरकार के अंतर्गत आ जाएँगे जिससे राज्य सरकार को विधि व्यवस्था सँभालने में आसानी होगी।
आज जब आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली में बनी है तो इस मुद्दे पर सरकार गम्भीर दिख रही है। सरकार की गम्भीरता का पता इसी बात से लग जाता है कि दिल्ली सरकार ने पूर्ण राज्य के दर्जे से सम्बंधित बिल का ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया है। ये भाजपा और कांग्रेस वाले खुद तो इस दिशा में कुछ ठोस कर नहीं पाए और अब जब दिल्ली सरकार ने ये बिल तैयार कर लिया है तो लगे बेतुकी बयानबाजी करने। भाजपा के नेता विजय गोयल जी कह रहे हैं कि ये ओड-इवन - 2 की असफलता से ध्यान हटाने के लिए नया ड्रामा किया गया है।
कांग्रेस के अजय माकन जी भी पीछे नहीं हैं, कह रहे हैं कि 15 महीने तक इस मुद्दे पर चुप क्यूँ रही दिल्ली सरकार। आप तो 15 साल तक चुप थे माकन जी। वैसे भी बिल का ड्राफ्ट 1 दिन में नहीं बन जाता। चुनावी घोषणापत्र में तो दोनों ही पार्टियों ने दिल्ली को पूर्ण राज्य को दर्ज दिलवाने की बात कही थी। 2003, 2008, 2013 और 2015 के चुनावी घोषणापत्र में भाजपा ने इसको अपने टॉप एजेंडे में रखा था। 1998 में तो भाजपा ने इसका बिल भी बना लिया था। तो अब इसका विरोध क्यों ? जब इस बात के समर्थन में ही नहीं थे तो जनता से झूठे वादे क्यों किये कांग्रेस और भाजपा ने ?
ये दोनों पार्टियां पहले भी इस मुद्दे पर राजनीति कर रही थी और आज भी वही कर रही है। लगता है कि इनको दिल्ली की सुख-सुविधा की कोई फ़िक्र नहीं है। दिल्ली में अपराध की कोई घटना होगी तो कोसने लगेंगे केजरीवाल सरकार को और जब दिल्ली पुलिस को राज्य सरकार के अधीन लाने की बात हो तो इसका भी विरोध करेंगे ये दोनों। सहयोग की राजनीति तो करना ही नहीं चाहती कांग्रेस और भाजपा। उम्मीद है कि ये बिल विधानसभा से पास भी हो जायेगा। लेकिन क्या ये बिल उप-राज्यपाल साहब द्वारा पास किया जाएगा ?
0 टिप्पणियाँ:
टिप्पणी पोस्ट करें