24 मई, 2016
आज कल राजनीति में नैतिकता की कमी कर रहे हैं कुछ लोग। बेवजह के आरोप, निजी और भद्दी टिप्पणियाँ करने लगे हैं अपने प्रतिद्वंदी नेताओं पर। क्या इसी तरह की राजनीति होगी विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में ? हमारे लोकतांत्रिक पद्धति से विश्व के दूसरे लोग सीखने आते हैं और हमारे यहाँ क्या हो रहा है ? क्या ऐसी क्षुद्रता के लिए कोई जगह होनी चाहिए राजनीति जैसी पाक एवं पवित्र व्यवस्था में ? पिछले कुछ सालों से या फिर यूँ कहिये कि जबसे सोशल मीडिया का चलन शुरू हुआ है, कुछ लोग कुछ भी बोलने लगे हैं। सोचते भी नहीं कि क्या बोल रहे हैं।
बस लिख देते हैं कुछ भी फेसबुक पर, टवीटर पर, या फिर व्हाट्सप्प पर और कुछ लोग लग जाते हैं इसको शेयर करने में, बिना इसकी अच्छाई बुराई को ध्यान में रखे। मतलब कि कुछ न कुछ लिखना ही है। नैतिक और अनैतिक का कुछ भी ध्यान नहीं रखते ऐसे लोग। पहले ऐसा नहीं होता था। राजनीतिक पार्टियों के नेता दूसरी पार्टियों से मतभेद होने के बावजूद उनके नेताओं के लिए सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग करते थे। कार्यकर्त्ता भी मर्यादा का ध्यान रखते थे। पर अब तो जैसे वो जमाना ही नहीं रहा। लोगों की जुबान फिसलने लगी है और कलम भी। की - बोर्ड तो ज्यादा ही फिसलने लगी है। खुजलीवाल, तड़ीपार, पप्पू, कलुआ आदि, क्या इस तरह के शब्दों का प्रयोग होगा अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए ? ये किसी उत्कृष्ट मानसिकता का काम हो ही नहीं सकता।
जबसे 5 राज्यों की विधानसभा चुनाव के परिणाम आये हैं, सोशल मीडिया में गजब ही हो रहा है। असम की एक विधायिका की निजी तस्वीरें धड़ल्ले से सोशल मीडिया में वायरल हो रही है। उनके चरित्र के बारे में भी तरह तरह की बातें लिख रहे हैं कुछ लोग। सुना है कि ये विधायिका असमिया फिल्मों की सफल अभिनेत्री भी रह चुकी हैं। हो सकता है कि ये सब तस्वीरें उनकी फिल्मों के किसी दृश्य में से लिए गए हों। नए - नए प्रकट हुए न्यूज़ पोर्टल्स को तो शायद ऐसी खबरों की तलाश ही रहती है। खूब चटखारे लेकर उनकी तस्वीरों को अपने पोर्टल पर दिखा रहे हैं कुछ न्यूज़ पोर्टल वाले। आखिर इन सब हरकतों से क्या साबित करना चाहते हैं ये लोग ? क्या किसी को इस तरह से किसी के चरित्र हनन की छूट दी जा सकती है ? किसी की निजी तस्वीरों को विश्व भर में पहुँच वाले मंच पर साझा करने को कैसे उचित ठहराया जा सकता है ? सुना है कि जो तस्वीरें उनकी बता कर वायरल की जा रही है, उनमे से कुछ तो उनकी है भी नहीं । जो तस्वीर इस लेख में लगाई गयी है वह भी उनकी ही बता कर इंटरनेट पर लोड की हुई है, पता नहीं सच क्या है ?
क्या हक़ है किसी की निजी जिंदगी में दूसरों को ताक झाँक करने का ? आश्चर्य है कि ऐसी हरकतों के विरोध में कोई राजनीतिक पार्टी सामने नहीं आई है। बताया जाता है कि ये नेत्री भाजपा से सम्बंधित हैं तो भाजपा वाले तो ऐसा करेंगे नहीं, ऐसी उम्मीद करता हूँ। आम आदमी पार्टी ऐसी चरित्र हनन के कार्यों से कोसों दूर रहती है। फिर किस पार्टी से सम्बंधित हैं ऐसे लोग जो ऐसी हरकत कर रहे हैं ? अगर किसी ने राजनीतिक दल की सदस्यता ले ली तो क्या उसकी निजी जिंदगी नहीं रह जाती ? उसको हँसने, खेलने और मौज मनाने का कोई हक़ नहीं ? चाहे जो कोई हो इसके पीछे, इस तरह की हरकतें पूरी तरह से निंदनीय है। ऐसी हरकतों की जितनी भी निंदा की जाए, कम है।
बस लिख देते हैं कुछ भी फेसबुक पर, टवीटर पर, या फिर व्हाट्सप्प पर और कुछ लोग लग जाते हैं इसको शेयर करने में, बिना इसकी अच्छाई बुराई को ध्यान में रखे। मतलब कि कुछ न कुछ लिखना ही है। नैतिक और अनैतिक का कुछ भी ध्यान नहीं रखते ऐसे लोग। पहले ऐसा नहीं होता था। राजनीतिक पार्टियों के नेता दूसरी पार्टियों से मतभेद होने के बावजूद उनके नेताओं के लिए सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग करते थे। कार्यकर्त्ता भी मर्यादा का ध्यान रखते थे। पर अब तो जैसे वो जमाना ही नहीं रहा। लोगों की जुबान फिसलने लगी है और कलम भी। की - बोर्ड तो ज्यादा ही फिसलने लगी है। खुजलीवाल, तड़ीपार, पप्पू, कलुआ आदि, क्या इस तरह के शब्दों का प्रयोग होगा अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए ? ये किसी उत्कृष्ट मानसिकता का काम हो ही नहीं सकता।
जबसे 5 राज्यों की विधानसभा चुनाव के परिणाम आये हैं, सोशल मीडिया में गजब ही हो रहा है। असम की एक विधायिका की निजी तस्वीरें धड़ल्ले से सोशल मीडिया में वायरल हो रही है। उनके चरित्र के बारे में भी तरह तरह की बातें लिख रहे हैं कुछ लोग। सुना है कि ये विधायिका असमिया फिल्मों की सफल अभिनेत्री भी रह चुकी हैं। हो सकता है कि ये सब तस्वीरें उनकी फिल्मों के किसी दृश्य में से लिए गए हों। नए - नए प्रकट हुए न्यूज़ पोर्टल्स को तो शायद ऐसी खबरों की तलाश ही रहती है। खूब चटखारे लेकर उनकी तस्वीरों को अपने पोर्टल पर दिखा रहे हैं कुछ न्यूज़ पोर्टल वाले। आखिर इन सब हरकतों से क्या साबित करना चाहते हैं ये लोग ? क्या किसी को इस तरह से किसी के चरित्र हनन की छूट दी जा सकती है ? किसी की निजी तस्वीरों को विश्व भर में पहुँच वाले मंच पर साझा करने को कैसे उचित ठहराया जा सकता है ? सुना है कि जो तस्वीरें उनकी बता कर वायरल की जा रही है, उनमे से कुछ तो उनकी है भी नहीं । जो तस्वीर इस लेख में लगाई गयी है वह भी उनकी ही बता कर इंटरनेट पर लोड की हुई है, पता नहीं सच क्या है ?
क्या हक़ है किसी की निजी जिंदगी में दूसरों को ताक झाँक करने का ? आश्चर्य है कि ऐसी हरकतों के विरोध में कोई राजनीतिक पार्टी सामने नहीं आई है। बताया जाता है कि ये नेत्री भाजपा से सम्बंधित हैं तो भाजपा वाले तो ऐसा करेंगे नहीं, ऐसी उम्मीद करता हूँ। आम आदमी पार्टी ऐसी चरित्र हनन के कार्यों से कोसों दूर रहती है। फिर किस पार्टी से सम्बंधित हैं ऐसे लोग जो ऐसी हरकत कर रहे हैं ? अगर किसी ने राजनीतिक दल की सदस्यता ले ली तो क्या उसकी निजी जिंदगी नहीं रह जाती ? उसको हँसने, खेलने और मौज मनाने का कोई हक़ नहीं ? चाहे जो कोई हो इसके पीछे, इस तरह की हरकतें पूरी तरह से निंदनीय है। ऐसी हरकतों की जितनी भी निंदा की जाए, कम है।
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