20 मई , 2016
आज कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री दिग्गविजय सिंह जी ने वो बात कह ही दी जो कांग्रेस के बहुत से नेता कहना चाहते होंगे लेकिन कह नहीं पाये कभी। ठीक ही तो कहा दिग्गविजय जी ने। कांग्रेस की सर्जरी जरूरी है। पार्टी के नेता ही क्या, कोई भी निष्पक्ष विचारक भी यही कहेगा की पार्टी में आमूल -चूल परिवर्तन जरूरी है। आखिर कब तक राहुल जी की छवि निर्माण करती रहेगी कांग्रेस ? राहुल गांधी जी का क्या करिश्मा है देश की जनता पर, इस बात को कांग्रेस भली-भांति समझ रही है।
पार्टी की किसी भी सफलता का श्रेय राहुल जी को देने में कांग्रेसियों में होड़ सी लग जाती है, चाहे इसमें उनका रत्ती भर भी योगदान हो या न हो। वहीं जब कभी पार्टी की शर्मनाक हार होती है तो राहुल गांधी को इसकी जिम्मेदारी से अलग कर दिया जाता है, सबमें हार की जिम्मेदारी लेने की होड़ लग जाती है। राहुल गांधी जी के व्यक्तित्व में वो बात कहीं से भी नजर नहीं आती जो उनकी दादीजी और पिताजी में हुआ करती थी। लेकिन पार्टी के पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है। राहुल जी की महिमा-मंडन के अलावा पार्टी कर भी क्या सकती है।
अब इस सर्जरी का क्या मतलब ? पार्टी में सारे फैसले तो गांधी परिवार ही लेती है। पार्टी का चेहरा भी गांधी परिवार यानि सोनिया जी और राहुल जी ही हैं। तो क्या इनको दरकिनार करने की बात हो रही है ? कांग्रेस पार्टी ऐसा सोच भी कैसे सकती है ? पार्टी में गांधी परिवार के समर्थकों की बड़ी संख्या है जो ऐसा कभी होने नहीं देगी। गांधी परिवार के अलावा पार्टी में कोई ऐसा चेहरा नहीं है जिसको सर्वसम्मति हासिल हो। अगर मान लें कि उसको पार्टी ने अपना नेता मान भी लिया तो क्या वो चेहरा कांग्रेस को अपेक्षित सफलता दिला पाएगा ? गांधी परिवार के त्याग और बलिदान के कारण ही तो पार्टी को वोट मिलते हैं या पार्टी वोट मांगती है।
अतीत में भी जब नरसिंह राव जी प्रधान मंत्री थे और उसके बाद भी कई सालों तक गांधी परिवार राजनीति से दूर रही थी। अपने दम पर कांग्रेसियों ने पार्टी को चलाने की बड़ी कोशिश की। इस दौरान नरसिंह राव जी और सीताराम केसरी जी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। लेकिन पार्टी का दिनोदिन ह्रास ही होता चला गया। गांधी परिवार के कांग्रेस से दूर रहने का खामियाजा पार्टी को बहुत भुगतना पड़ा था उस समय। 1996 एवं 1997 में पार्टी को संयुक्त मोर्चा की सरकार को बाहर से समर्थन देना पड़ा था। कोई चारा न पाकर पार्टी के बड़े नेताओं ने 1998 में फिर से गांधी परिवार की शरण में जाना ही उचित समझा था। सोनिया गांधी जी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। उसके बाद पार्टी के अच्छे दिन आने शुरू हुए और 2004 के चुनाव में चाहे गठबंधन की ही सही, पार्टी सरकार बनाने में कामयाब हुई और लगातार 10 साल तक सत्ता में रही।
अब पार्टी की फिर से हालत ख़राब है। केंद्र की सत्ता तो हाथ से गयी ही इनकी सरकार कई राज्यों में ही सिमट कर रह गयी है। हरियाणा , महाराष्ट्र, असम में पार्टी भाजपा के हाथों सत्ता गँवा बैठी है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के उदय के कारण 15 साल की हुकूमत से बाहर होना पड़ा पार्टी को। आम आदमी पार्टी के कारण ही पंजाब के चुनाव में भी इसकी दुर्दशा होती दिख रही है। अब पार्टी को सर्जरी की जरूरत तो वाकई में है, लेकिन इसकी प्रकृति क्या होगी इसको लेकर बहुत संशय है। कोई कह रहा है कि राहुल जी को अध्यक्ष बनाया जाय तो कोई प्रियंका जी को सक्रिय राजनीति में लाने की बात कर रहा है।
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