6 अप्रैल, 2016
सुने हैं कि इस साल 1 अप्रैल, 2016 से बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू हो गया है। इसके तहत अब बिहार में शराब बेचना, रखना और पीना पूरी तरह प्रतिबंधित हो गया है। निजी पार्टी एवं शादी-विवाह में शराब परोसने से पहले लाइसेंस लेना होगा। पहिले तो सोचे कि मूर्ख दिवस पर कोई मूर्ख बना रहा है हमको। लेकिन जब दूसरे दिन भी सब अख़बार और दूसरे जगह पर भी इहे बात सब होने लगा तब प्रतीत हुआ कि ई त सहिये में लागू हो गया है भाई। अब क्या होगा ?
क्या बिहार में जो लोग शराब का सेवन करने के आदि हो गए थे, 31 मार्च, 2016 की आधी रात के बाद से अचानक से संत बन गए? पहले तो सुनने में आया था की सिर्फ देशी और मसालेदार शराब पर ही प्रतिबन्ध है फिर मालूम हुआ कि ताड़ी भी नहीं मिलेगी और उसके बाद अब पता चला है कि विदेशी शराब भी इसी कानून के दायरे में आ जाएगा। हर राजनीतिक दल इस फैसले का स्वागत ही कर रहे हैं, लेकिन ज्योंहि इस फैसले के दुष्परिणाम सामने आएंगे, विरोधी दलों के साथ साथ सहयोगियों के भी सुर अगर बदलने लगे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
आर्थिक कमजोरी के दौर से गुजर रहे बिहार राज्य के लिए सरकार की आमदनी में जो कमी होगी वही इस शराबबंदी का सबसे बड़ा दुष्परिणाम है। खबर है कि 1,25,80,000 लीटर शराब को नष्ट कर दिया गया। क़ानून की ज्यादा जानकारी तो नहीं मुझे, लेकिन क्या इसको नष्ट करना जरूरी था ? मतलब कि ऐसे प्रदेश में जहाँ शराबबंदी नहीं है वहां इसको बेचा भी जा सकता था न ? इससे सरकार को राजस्व की प्राप्ति तो हो जाती। देशी शराब के निर्माण कार्य में लगे हुए लोग अब बेरोजगार हो जाएंगे, उसके पुनर्वास के लिए क्या सोचा है सरकार ने? पूर्ण शराबबंदी के बाद देशी-विदेशी शराब, ताड़ी के व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है अभी।
कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो शराब के बिना रह ही नहीं सकते। ऐसे लोगों के लिए क्या सोचा है सरकार ने? ये शराबबंदी की बातें सुनने और कहने में तो बहुत अच्छी लगती है, लेकिन व्यवहारिक रूप में इसका हाल कुछ और ही हो जाता है। अब जब शराब नहीं मिल रही है तो पीने वाले क्या करेंगे? क्या शराब की कालाबाजारी शुरू नहीं हो जायेगी? खबर आ रही है कि लोग शराब न मिलने की वजह से बीमार पड़ रहे हैं। कुछ की हालत पागल जैसी हो गयी है तो किसी ने घर में रखे साबुन को ही खाना शुरू कर दिया। अस्पतालों एवं नशा मुक्ति केंद्रों में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। कुछ लोग सरकार को ही जम के कोस रहे हैं तो कुछ खांसी की दवाई का ही सहारा ले रहे हैं।
इस शराबबंदी का धीरे धीरे विरोध भी शुरू हो गया है। शराबबंदी को जनता की रूचि, स्वच्छन्दता और उसकी पसंद पर सीधा हमला बताते हुए हाई कोर्ट में किसी ने जनहित याचिका भी दायर कर दी है। सिर्फ वाह-वाही लूटने के लिए क़ानून बना देना तर्कसंगत नहीं होता, इसका व्यवहारिक पहलु भी देखा जाना चाहिए । सुनने में आया है कि कानून लागू होने के बाद से शराब के शौक़ीन नेपाल एवं दूसरे राज्यों में जाकर जाम छलका रहे हैं। यह भी बहुत मुमकिन है कि बॉर्डर इलाकों में शराब की कालाबाजारी शुरू हो जाए। अतीत में हरियाणा में भी शराबबंदी लागू हुई थी, उसके बाद क्या हुआ था ? फिर से शराब पीनी और पिलानी शुरू की गयी न।
सारी दलीलें अपनी जगह, हर कानून के अपने फायदे और नुकसान होते हैं , इसके सदुपयोग और दुरूपयोग होते हैं। लेकिन अगर कोई अच्छा काम करता है तो उसका स्वागत तो करना चाहिए न। नीतीश जी को बिहार में शराबबंदी लागू करने के लिए बधाई।
क्या बिहार में जो लोग शराब का सेवन करने के आदि हो गए थे, 31 मार्च, 2016 की आधी रात के बाद से अचानक से संत बन गए? पहले तो सुनने में आया था की सिर्फ देशी और मसालेदार शराब पर ही प्रतिबन्ध है फिर मालूम हुआ कि ताड़ी भी नहीं मिलेगी और उसके बाद अब पता चला है कि विदेशी शराब भी इसी कानून के दायरे में आ जाएगा। हर राजनीतिक दल इस फैसले का स्वागत ही कर रहे हैं, लेकिन ज्योंहि इस फैसले के दुष्परिणाम सामने आएंगे, विरोधी दलों के साथ साथ सहयोगियों के भी सुर अगर बदलने लगे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
आर्थिक कमजोरी के दौर से गुजर रहे बिहार राज्य के लिए सरकार की आमदनी में जो कमी होगी वही इस शराबबंदी का सबसे बड़ा दुष्परिणाम है। खबर है कि 1,25,80,000 लीटर शराब को नष्ट कर दिया गया। क़ानून की ज्यादा जानकारी तो नहीं मुझे, लेकिन क्या इसको नष्ट करना जरूरी था ? मतलब कि ऐसे प्रदेश में जहाँ शराबबंदी नहीं है वहां इसको बेचा भी जा सकता था न ? इससे सरकार को राजस्व की प्राप्ति तो हो जाती। देशी शराब के निर्माण कार्य में लगे हुए लोग अब बेरोजगार हो जाएंगे, उसके पुनर्वास के लिए क्या सोचा है सरकार ने? पूर्ण शराबबंदी के बाद देशी-विदेशी शराब, ताड़ी के व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है अभी।
कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो शराब के बिना रह ही नहीं सकते। ऐसे लोगों के लिए क्या सोचा है सरकार ने? ये शराबबंदी की बातें सुनने और कहने में तो बहुत अच्छी लगती है, लेकिन व्यवहारिक रूप में इसका हाल कुछ और ही हो जाता है। अब जब शराब नहीं मिल रही है तो पीने वाले क्या करेंगे? क्या शराब की कालाबाजारी शुरू नहीं हो जायेगी? खबर आ रही है कि लोग शराब न मिलने की वजह से बीमार पड़ रहे हैं। कुछ की हालत पागल जैसी हो गयी है तो किसी ने घर में रखे साबुन को ही खाना शुरू कर दिया। अस्पतालों एवं नशा मुक्ति केंद्रों में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। कुछ लोग सरकार को ही जम के कोस रहे हैं तो कुछ खांसी की दवाई का ही सहारा ले रहे हैं।
इस शराबबंदी का धीरे धीरे विरोध भी शुरू हो गया है। शराबबंदी को जनता की रूचि, स्वच्छन्दता और उसकी पसंद पर सीधा हमला बताते हुए हाई कोर्ट में किसी ने जनहित याचिका भी दायर कर दी है। सिर्फ वाह-वाही लूटने के लिए क़ानून बना देना तर्कसंगत नहीं होता, इसका व्यवहारिक पहलु भी देखा जाना चाहिए । सुनने में आया है कि कानून लागू होने के बाद से शराब के शौक़ीन नेपाल एवं दूसरे राज्यों में जाकर जाम छलका रहे हैं। यह भी बहुत मुमकिन है कि बॉर्डर इलाकों में शराब की कालाबाजारी शुरू हो जाए। अतीत में हरियाणा में भी शराबबंदी लागू हुई थी, उसके बाद क्या हुआ था ? फिर से शराब पीनी और पिलानी शुरू की गयी न।
सारी दलीलें अपनी जगह, हर कानून के अपने फायदे और नुकसान होते हैं , इसके सदुपयोग और दुरूपयोग होते हैं। लेकिन अगर कोई अच्छा काम करता है तो उसका स्वागत तो करना चाहिए न। नीतीश जी को बिहार में शराबबंदी लागू करने के लिए बधाई।
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