4 अप्रैल, 2016
आधी रात से ज्यादा बीत चुकी है, फिर भी मेरी आँखों में नींद नहीं है। ऐसा नहीं है कि इससे पहले कभी मैं इतनी देर तक नहीं जगा, बल्कि कई बार तो पूरी पूरी रात जग चूका हूँ , कभी मुशायरे में तो कभी कवि सम्मेलन में , कभी किसी शादी-ब्याह के मौके पर तो कभी ज्यादा गर्मी के कारण नींद नहीं आने पर। पर आज इनमें से कोई बात नहीं है। आज तो कुछ और ही वजह है, और वो वजह तुम हो ।
आज ही तो तुम मिले थे मुझसे पहली बार। एक अनदेखा अनजाना सा चेहरा, जिसकी तरफ पहली बार देखने मात्र भर से ही चैत्र की भरी गर्मी में भी अगहन-पूस वाली ठंडी का सुखद अहसास होने लगा था मुझे । सोच भी नहीं पाया था कि कैसे पुकारूँ तुमको। कोई ऐसा रिश्ता भी नहीं कि नाम लेकर सम्बोधित कर सकूं तुमको।
" कैसे हैं आप ? " यही शब्द निकले थे न तुम्हारी गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों से मेरे लिए। और वाणी की मधुरता ऐसी कि कोयल भी शरमा जाए और शक्कर को भी मधुमेह हो जाय तुम्हारी वाणी सुनकर। एक टक देखे जा रहा था तुमको और इस बात की भी सुध नहीं थी कि तुम्हारे होठों से मेरे लिए शब्द प्रस्फुटित हो चुके हैं और मुझे इसके जवाब में सदियों से चले आ रहे उसी शब्द को दुहराना है कि "ठीक हूँ मैं, आप कैसी हैं ? " मेरी तन्द्रा टूटने पर ऐसा ही किया भी मैंने।
फिर तुमसे बात करने का सिलसिला जो शुरू हुआ पता ही नहीं कि कितना वक्त गुजर गया, क्या कहा तुमने और क्या कहा मैंने इतना भी याद नहीं मुझे अब तो। लेकिन तुम्हारी खूबसूरत सी सूरत और कोयल सी मीठी आवाज ही नहीं भूल पा रहा हूँ। यूँ तो बिजली न होने पर बहुतों बार झुंझला चूका हूँ मैं एक आम शहरी की तरह लेकिन आज न जाने क्यों बहुत अच्छा लग रहा था कि बिजली नहीं है। दिल भी दुआ कर रहा था कि सारी रात बिजली न आये और तुम मुझसे ऐसे ही बात करते रहो।
अभी 1-2 घंटे पहले की ही तो बात है हम अँधेरे में टहल रहे थे और तुम अपने सारे जज्बात मुझसे साझा कर रहे थे। मैं तो कायल ही हो गया तुम्हारी साफगोई का। कोई एक अजनबी पर इतना भरोसा कैसे कर सकता है ? कैसे अपने जीवन के सभी अनछुए पहलु को तुम मुझसे साझा कर रहे थे और मैं एक अच्छे श्रोता की तरह सुनता जा रहा था। कुछ ही देर की बातचीत में तुम एक अजनबी से मेरे सबसे अच्छे जानकार बन गए।
अब तुम उधर मीठी नींद में सो रही होगी और मैं इधर तुम और तुम्हारी बातों को याद कर रहा हूँ। या फिर तुमको भी नींद नहीं आ रही होगी और तुम भी यही सब सोच रहे होगे। क्या यही प्यार है ? मुझे तो यही लगता है। है, न ?
अभी 1-2 घंटे पहले की ही तो बात है हम अँधेरे में टहल रहे थे और तुम अपने सारे जज्बात मुझसे साझा कर रहे थे। मैं तो कायल ही हो गया तुम्हारी साफगोई का। कोई एक अजनबी पर इतना भरोसा कैसे कर सकता है ? कैसे अपने जीवन के सभी अनछुए पहलु को तुम मुझसे साझा कर रहे थे और मैं एक अच्छे श्रोता की तरह सुनता जा रहा था। कुछ ही देर की बातचीत में तुम एक अजनबी से मेरे सबसे अच्छे जानकार बन गए।
अब तुम उधर मीठी नींद में सो रही होगी और मैं इधर तुम और तुम्हारी बातों को याद कर रहा हूँ। या फिर तुमको भी नींद नहीं आ रही होगी और तुम भी यही सब सोच रहे होगे। क्या यही प्यार है ? मुझे तो यही लगता है। है, न ?
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