25 अप्रैल, 2016
दिल्ली में आज कल ओड-इवेन (सम-विषम) पार्ट 2 चल रहा है। इससे पहले 1 से 15 जनवरी, 2016 तक पार्ट 1 चला था। लोगों का बहुत समर्थन मिला था दिल्ली में प्रदुषण कम करने की इस मुहिम को। इसके तहत महीने की ओड (विषम) तारीख जैसे 1, 3, 5, को विषम निबंधन संख्या वाले डीजल या पेट्रोल से चलने वाले निज़ी 4 पहिया वाहन को ही दिल्ली की सड़कों पर चलने की इजाजत होती है और इवन (सम) तारीख जैसे 2, 4, 6, को सम संख्या वाले वाहन को। कुछ लोगों को इससे छूट भी दी गयी है। दिल्ली में हर तरह के प्रदुषण की वृद्धि होती जा रही है साल दर साल। कई बार माननीय न्यायालय के दिशा निर्देश के कारण सरकार को कुछ कदम प्रदुषण नियंत्रण की दिशा में उठाने पड़े थे, लेकिन पिछली सरकारों की अकर्मण्यता एवं दृढ इच्छा शक्ति के अभाव में स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं आ सका और दिल्ली की हवा साल दर साल प्रदूषित ही होती गयी। पूर्ववर्ती सरकारें सिर्फ इस स्थिति पर चिंता व्यक्त कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती थी।
लेकिन दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल जी के नेतृत्व में बनी आम आदमी पार्टी की सरकार ने इस समस्या से निजात पाने के लिए ठोस एवं प्रभावी कदम उठाने का निश्चय किया। अपनी योजना के तहत सरकार ने फौरी तौर पर प्रदुषण पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से दिल्ली में ओड-इवेन (सम-विषम) योजना को लागु करने की ठानी। इसको लागू करना इतना आसान नहीं था। इसके बारे में सही से जागरूकता अभियान नहीं चलाने के कारण जनता के एक बड़े हिस्से के नाराज होने का खतरा भी था। ज्योंहि इसकी घोषणा मात्र हुई, कि समाज के कई वर्गों की तरफ से इसके विरोध के स्वर आने शुरू हो गए। सबकी अपनी अपनी समस्या थी।
इसी दौरान राजनीतिक दलों को भी अपने स्वार्थ की रोटी को सेंकने का मानों स्वर्णिम मौका हाथ लग गया। कुछ लोग तो न्यायालय भी पहुँच गए इसके खिलाफ। लेकिन जब इसको लागू किया गया तब जनता का भरपूर समर्थन मिला। प्रदुषण में उल्लेखनीय कमी तो आई ही, सड़कों पर जाम से भी भरपूर निजात मिला। निर्बाध रूप से यह प्रयोग सफल हुआ। लेकिन इस दौरान कुछ लोगों के विरोध के कारण भविष्य में इसको लागू करने को लेकर दिल्ली सरकार ने जगह जगह जनसभा करके इस बारे में जनता की राय ली, कुछ लोगों ने अपनी राय ऑनलाइन भी भेजी । जनता का मत बहुत ही उत्साहवर्द्धक रहा। इसको दुबारा 15 से 30 अप्रैल, 2016 तक लागू करने का निश्चय किया गया।
इसी दौरान राजनीतिक दलों को भी अपने स्वार्थ की रोटी को सेंकने का मानों स्वर्णिम मौका हाथ लग गया। कुछ लोग तो न्यायालय भी पहुँच गए इसके खिलाफ। लेकिन जब इसको लागू किया गया तब जनता का भरपूर समर्थन मिला। प्रदुषण में उल्लेखनीय कमी तो आई ही, सड़कों पर जाम से भी भरपूर निजात मिला। निर्बाध रूप से यह प्रयोग सफल हुआ। लेकिन इस दौरान कुछ लोगों के विरोध के कारण भविष्य में इसको लागू करने को लेकर दिल्ली सरकार ने जगह जगह जनसभा करके इस बारे में जनता की राय ली, कुछ लोगों ने अपनी राय ऑनलाइन भी भेजी । जनता का मत बहुत ही उत्साहवर्द्धक रहा। इसको दुबारा 15 से 30 अप्रैल, 2016 तक लागू करने का निश्चय किया गया।
अभी इसका दूसरा हफ्ता चल रहा है, जनता का भरपूर सहयोग मिल रहा है। लेकिन विपक्षी दलों, खासकर भाजपा को इस योजना की सफलता फूटे आँख नहीं सुहा रही। इसको असफल करने के भिन्न भिन्न प्रयास किये जा रहे हैं। पिछले दिनों मुकरबा चौक के पास डंपिंग साईट पर ही धुआं निकलती देखी गयी, जरूर किसी ने आग लगाई होगी । पार्कों में सूखे पत्ते जलाए जा रहे हैं। यूँ तो कई विशिष्ट व्यक्तियों को इस योजना से छूट मिली हुई है, लेकिन दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री एवं सभी मंत्री इस योजना का पालन कर रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा के दिग्गज नेता में शुमार श्री विजय गोयल जी ने पहले ही हफ्ते घोषणा कर दी कि वह 18 अप्रैल, 2016 को इस नियम का उल्लंघन करेंगे और 2000/- रूपए का चालान कटवाएंगे । क्या हिम्मत का काम किया नेता जी ने ! अपने वादे के मुताबिक उन्होंने उल्लंघन किया और 2000/- रूपए नहीं बल्कि पूरे 3500/- रूपए का चालान कटवा बैठे। 1500/- रूपए ड्राइविंग लाइसेंस और इन्शुरन्स के कागजात न होने के कारण जुर्माना के रूप में भरना पड़ा। मतलब इनको दिल्ली के स्वास्थ्य की कोई चिंता नहीं है, इनको तो बस अपनी राजनीति चमकाने से मतलब है।
आज से संसद का सत्र शुरू होने के कारण दिल्ली सरकार ने सांसदों के लिए विशेष बसों की व्यवस्था कर रखी थी ताकि ओड-इवन के कारण सांसदों को संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए संसद पहुँचने में कोई परेशानी नहीं हो। लेकिन इंतजाम होने के बावजूद भी कई सांसद इस नियम का उल्लंधन करते पाए गए, जिनमें भाजपा के लोकसभा सांसद श्री परेश रावल जी एवं श्री उदित राज जी का नाम प्रमुख है। ऐसा नहीं है कि सबने ही कानून तोड़े, कुछ ने कार पूलिंग की तो कुछ ने कुछ ने पैदल ही चलना उचित समझा और एक सांसद तो साईकिल पर ही संसद पहुंचे।
कुल मिलाकर कहना ये है कि अगर दिल्ली के प्रदुषण-स्तर में कमी आये, यहाँ की हवा स्वास्थ्यकर हो जाए इसके लिए ये माननीय थोड़ी तकलीफ नहीं कर सकते क्या ? आखिर ये लोग भी तो दिल्ली में रहते हैं। क्या दिल्ली को प्रदुषण-मुक्त करने की जिम्मेदारी सिर्फ दिल्ली सरकार की है ? क्या सभी राजनितिक दलों का सहयोग आपेक्षित नहीं है ? चूँकि इस अच्छे योजना का आगाज दूसरी पार्टी की सरकार ने किया है तो भाजपा वाले इसका विरोध कर रहे हैं। क्या इन लोगों का इस तरह से विरोध करना उचित है ?
क्या ये स्वस्थ राजनीति का उदाहरण है ? मोदी जी ने जब योग करने का आह्वान किया तो आम आदमी पार्टी या उसके किसी नेता ने तो अड़ंगा नहीं लगाया था । केजरीवाल जी तो इण्डिया गेट पर इसमें हिस्सा लेने भी गए थे। जब मोदी जी ने स्वच्छ भारत अभियान चलाया तब भी आम आदमी पार्टी ने इसकी आलोचना नहीं की। पूरी पार्टी ने केजरीवाल जी के नेतृत्व में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और हाथ में झाड़ू थामी। इन लोगों की तरह इन अच्छी योजनाओं को विफल करने की साजिश नहीं की। अगर इसी ओड-इवेन की योजना को मोदी जी लेकर आये होते तो ये भाजपाई इसको सफल बनाने के लिए पैदल भी चलते, साईकिल भी चलाते। लेकिन ये तो आम आदमी पार्टी की सरकार की योजना है न , इसकी तो हवा निकालनी ही पड़ेगी। इनका कहना है कि इससे आम आदमी पार्टी और केजरीवाल जी का प्रचार हो रहा है। अरे भाई, जो अच्छे काम करेगा उसका प्रचार तो होगा ही। स्वच्छ भारत अभियान और योग से मोदी जी का प्रचार नहीं हुआ ? लेकिन उसमें तो किसी ने राजनीति नहीं की।
ये भाजपा की बौखलाहट के सिवा और कुछ नहीं है। ये पब्लिक है, सब जानती है और मौका मिलने पर करारा जवाब भी देती है। 2013 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जनता ने अपना जवाब दे दिया था और ये लोग सत्ता की चौखट से बिना टिकट के लिफाफे की तरह लौट आये थे। उसके बाद इन्होने जो कर्म किये उसका भी फल जनता ने 2015 के विधानसभा चुनाव में दे दिया कि इनके सारे विधायक एक ऑटो में ही विधानसभा पहुँचने लायक हो गए। अब इससे ज्यादा दुर्गति क्या चाहते हैं ये लोग जो ऐसी हरकतें कर रहे हैं ?
Dirty People making third Class Dirty Politics ?
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