10 मार्च, 2016
पिछले दिनों माननीया मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ज़ुबिन ईरानी जी का सदन में दिए गए भाषण को आज देखने का मौका मिला। इससे पहले मैं इनको सिर्फ टेलीविजन के धारावाहिकों में ही देखा था। बड़ी ही मृदुल स्वभाव देखा है मैंने। और मेरी ही नहीं मेरे जैसे लाखों लोगों की भी यही धारणा होगी की स्मृति जी बड़ी ही शांत एवं मृदुल स्वाभाव की हैं। सत्यता तो उनको ही पता होगा जो उनको करीब से जानते होंगे। हमने तो सिर्फ उनके धारावाहिकों को देखकर ही ऐसी धारणा बनाई है।
लेकिन पिछले दिनों राज्यसभा में उनके भाषण को देखकर मेरी यह धारणा थोड़ी बदल गयी है। या हो सकता है कि राजनीति में आने के बाद उनमें यह परिवर्तन आ गया हो। भाजपा वही पार्टी है जिसके नेताओं में पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी और आदरणीय श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी जैसे नेता हैं जो बड़े ही शांत चित्त से सदन या सदन के बाहर अपने विचार रखने के लिए जाने जाते हैं। विरोधी पार्टी के नेताओं पर शब्द बाण वो लोग भी चलाते थे, लेकिन बड़े ही शांत चित्त रह कर। कभी चीखते चिल्लाते नहीं देखा उनको।
लेकिन पिछले दिनों राज्यसभा में उनके भाषण को देखकर मेरी यह धारणा थोड़ी बदल गयी है। या हो सकता है कि राजनीति में आने के बाद उनमें यह परिवर्तन आ गया हो। भाजपा वही पार्टी है जिसके नेताओं में पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी और आदरणीय श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी जैसे नेता हैं जो बड़े ही शांत चित्त से सदन या सदन के बाहर अपने विचार रखने के लिए जाने जाते हैं। विरोधी पार्टी के नेताओं पर शब्द बाण वो लोग भी चलाते थे, लेकिन बड़े ही शांत चित्त रह कर। कभी चीखते चिल्लाते नहीं देखा उनको।
लेकिन स्मृति जी का सदन में बड़ा ही रौद्र और आक्रामक रूप देखने को मिला। इतना गुस्सा किसलिए ? क्या सिर्फ इसलिए कि ये लोग विपक्षी पार्टी के नेता हैं और आपके मत से इतर विचार रखते हैं ? अपने भाषण के दौरान एक समय उन्होंने कहा "अगर मेरे जवाब से आप संतुष्ट न हों, आज इस सभा में कहती हूँ मायावती जी, मैं आज बसपा के एक एक कार्यकर्ता और आपके नेताओं से कहती हूँ, सर कलम करके आपके चरणों में छोड़ देंगे अगर मेरे जवाब से आप असंतुष्ट हों"।
इस तरह की बातें संवाद के रूप में किसी चलचित्र या धारावाहिकों में तो उचित प्रतीत होती है, दर्शकों की वाहवाही मिलती है लेकिन सदन में इस तरह की बातों से सभी प्रभावित हो ऐसा शायद ही कभी होता है। सरकार के बयान से किसी भी राजनीतिक दल या उनके नेताओं का संतुष्ट या असंतुष्ट होना स्वाभाविक प्रक्रिया है और यही तो लोकतंत्र की विशेषता है।
इस तरह की बातें संवाद के रूप में किसी चलचित्र या धारावाहिकों में तो उचित प्रतीत होती है, दर्शकों की वाहवाही मिलती है लेकिन सदन में इस तरह की बातों से सभी प्रभावित हो ऐसा शायद ही कभी होता है। सरकार के बयान से किसी भी राजनीतिक दल या उनके नेताओं का संतुष्ट या असंतुष्ट होना स्वाभाविक प्रक्रिया है और यही तो लोकतंत्र की विशेषता है।
उसके बाद अपने भाषण में मायावती जी ने सदन में कहा कि उनकी पार्टी श्री रोहित प्रकरण मामले में सम्बंधित मंत्री के जवाब से बिलकुल भी सहमत नहीं है। इसके साथ ही उनको उनका वादा भी याद दिलाते हुए कहा कि क्या अब वह अपने इस वायदे को पूरा करेंगी ? राजनीति में सवाल जवाब होते रहते हैं, सत्तापक्ष और विपक्ष में सहमति या असहमति होती रहती है, लेकिन जो सौम्य रहकर शांत चित्त से अपनी बात को रखता है उसकी ज्यादा प्रशंसा होती है।
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