अटल जी के सक्रीय राजनीति से हटने के बाद आडवाणी जी भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठतम नेता हैं। पार्टी की सेवा में जी जान से लगे रहे। पार्टी के लिए इनका योगदान अगर अटल जी से ज्यादा नहीं था तो कम भी नहीं था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्त्ता से लेकर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया उन्होंने। केंद्र में मंत्री से लेकर भारत के उप - प्रधानमंत्री भी बने। भारतीय जनता पार्टी के सांसदों की संख्या एक समय लोकसभा में सिर्फ २ हुआ करती थी। लेकिन अगले ही चुनाव में यह संख्या 85 पर पहुँच गयी। इसका श्रेय आडवाणी जी को ही दिया जा सकता है। आडवाणी जी ने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ यात्रा शुरू की। जिसके बाद हुए लोक सभा चुनाव में 120 सीटें पार्टी को मिली। उसके बाद पार्टी तीन बार सत्ता में भी आई। तीनों ही बार अटल जी प्रधान मंत्री बने।
उसके बाद आडवाणी जी के नेतृत्व में पार्टी ने लोक सभा के चुनाव लड़े लेकिन सत्ता में नहीं आ पायी। 2014 के चुनाव में पार्टी का चेहरा श्री नरेंद्र मोदी जी बने, पार्टी सत्ता में आई और मोदी जी प्रधान मंत्री बने। अब बात यहाँ आती है कि क्या आडवाणी जी को वो सफलता मिली जिसके वो हकदार थे ? जितनी मेहनत उन्होंने की , जितना योगदान है उनका भारतीय राजनीति में, किसी को भी प्रधानमंत्री बंनने की उम्मीद होगी। लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था। जब तक वो पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे तो पार्टी को सत्ता ही हासिल नहीं हुई।
उसके बाद आडवाणी जी के नेतृत्व में पार्टी ने लोक सभा के चुनाव लड़े लेकिन सत्ता में नहीं आ पायी। 2014 के चुनाव में पार्टी का चेहरा श्री नरेंद्र मोदी जी बने, पार्टी सत्ता में आई और मोदी जी प्रधान मंत्री बने। अब बात यहाँ आती है कि क्या आडवाणी जी को वो सफलता मिली जिसके वो हकदार थे ? जितनी मेहनत उन्होंने की , जितना योगदान है उनका भारतीय राजनीति में, किसी को भी प्रधानमंत्री बंनने की उम्मीद होगी। लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था। जब तक वो पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे तो पार्टी को सत्ता ही हासिल नहीं हुई।
कभी-कभी उनका बयान आता है, उससे लगता है कि वो भारतीय राजनीति की दिशा से खुश नहीं हैं। पार्टी के भी क्रिया कलापों से कभी कभी वो असहमत से नजर आते हैं। उनके इतने लम्बे राजनीतिक जीवन से आज के राजनेताओं को सीखने की जरूरत है। सदन में उनका आचरण सदा ही सौम्य और मर्यादित रहा। बड़े ही ओजस्वी वक्ता हैं। अपनी बात को बड़ी ही गंभीरता से, बिना उत्तेजित हुए रखने की कला कोई उनसे सीखे। उनके जैसा व्यक्ति भारतीय राजनीति के धरोहर हैं और उनको वो सम्मान मिलना ही चाहिए जिसके वो हकदार हैं। लेकिन भाजपा ने तो जैसे बड़े-बुजुर्गों को राजनीतिक वृद्धाश्रम ही भेज रखा है। पार्टी में मुरली मनोहर जोशी जी एवं यशवंत सिन्हा जी जैसे अनुभवी नेता हैं, लेकिन उनकी सलाह भी लेना उचित नहीं समझते अबके प्रथम पंक्ति के नेता।
भारतीय जनता पार्टी आडवाणी जी को प्रधानमंत्री बनाने में तो कामयाब नहीं हो सकी लेकिन राष्ट्रपति के आगामी चुनाव में अपनी तरफ से उम्मीदवार तो बनाना ही चाहिए। लेकिन पार्टी ऐसा करेगी, इस पर तो संदेह ही लगता है।
भारतीय जनता पार्टी आडवाणी जी को प्रधानमंत्री बनाने में तो कामयाब नहीं हो सकी लेकिन राष्ट्रपति के आगामी चुनाव में अपनी तरफ से उम्मीदवार तो बनाना ही चाहिए। लेकिन पार्टी ऐसा करेगी, इस पर तो संदेह ही लगता है।
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