30 मार्च 2014
फेसबुक एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने दूरस्थ मित्रों एवं रिश्तेदारों के साथ बातचीत कर सकते हैं, आपस में सुनहरे पलों के फ़ोटो एवं विडियो का आदान प्रदान भी कर सकते हैं। जब इसकी शुरुआत हुई थी तो यह अपने आप में एक क्रांति थी। तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि अपने अपनों से इतनी आसानी और सस्ते में संपर्क में रहा जा सकता है।
फेसबुक से जहाँ पुराने दोस्तों के संपर्क में रहा जा सकता है वहीँ नए मित्र और रिश्ते भी बनाने में सहूलियत मिलती है। जी हाँ, फेसबुक के माध्यम से बहुत से लोगों को जीवनसाथी भी मिले हैं। आज जिसको भी कंप्यूटर के इस्तेमाल ही थोड़ी भी जानकारी है उसका प्रोफाइल कहीं और हो न हो , फेसबुक पर जरूर है। इसके इस्तेमाल से बड़े बड़े सेलेब्रिटी, उद्योगपति , व्यवसायी और नेता भी खुद को दूर नहीं रख पाये हैं। बल्कि नेताओं के लिए तो पढ़े लिखे लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता बढ़ाने का अच्छा साधन बन गया है फेसबुक।
लेकिन दिल्ली विधान सभा चुनाव 2012 से , फेसबुक का फेस ही बदल गया है हिंदुस्तान में। सामाजिक रिश्तों को करीबी प्रदान करने वाला फेसबुक अब राजनितिक अखाडा सा बनता दिख रहा है। आम चुनाव २०१४ में तो इस अखाड़े ने बड़ा ही भयावह चेहरा इख़्तियार कर लिया है। लगभग सभी राजनितिक दलों और उनके नेता के फेसबुक एकाउंट हैं। हर जिले में इनके पार्टी ऑफिस हो न हो लेकिन फेसबुक एकाउंट जरूर है। फेसबुक यूजर अब राजनितिक दलों के कार्यकर्त्ता में बदल गए हैं या फिर इनके कार्यकर्त्ता फेसबुक यूजर बन गए हैं यह कहना मुश्किल है।
हर फेसबुक यूजर को अपने राजनितिक निष्ठा वाले पार्टी सरकार बनती दिख रही है। इस तरह का दावा ये लोग जी भर के कर रहे हैं। अपनी पार्टी के प्रचार में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं, मानो चुनाव फेसबुक पर ही होंगे और फेसबुक यूजर ही वोटर होंगे। अपने दल और नेता की जम के प्रशंसा करते हैं और प्रतिद्वंदी दलों की जम के बुराई। मानो दुनिया भर की या फिर पुरे हिंदुस्तान की ईमानदारी और योग्यता इन्हीं के नेता में समाहित हो गयी हो। एक बार इनके नेता या पार्टी की आलोचना करके देख लीजिये, ऐसे टूट पड़ेंगे मानों आप आतंकवादी हो। ऐसी ऐसी गालियाँ सुनने को मिलेंगी कि गालियाँ भी शर्मा जाएँ।
अपने नेता के बचाव और दूसरे की बुराई करने में किसी भी लोक लाज और मर्यादा का ध्यान नहीं रखते ये लोग। ऐसा लगता है कि इनको सिर्फ इसी काम के लिए पैसे देकर फेसबुक पर भेजा गया है। अपने विचारों को व्यक्त करना अच्छी बात है, लेकिन इतना आक्रोश और गुस्सा किस लिए ? इनके नेता तो आपस में बड़े ही प्यार से रहते है लेकिन ये फेसबुक पर ऐसे लड़ते हैं जैसे सामने हो तो पता नहीं क्या कर डाले एक दूसरे के साथ। फेसबुक आपसी प्रेम और भाई चारा बढ़ाने का अच्छा माध्यम है, इसको दुश्मनी के के अखाड़े में तब्दील न किया जाए।
आखिर चुनाव फेसबुक पर थोड़े ही न होंगे।
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