1 दिसम्बर, 2013
आज से ठीक तीसरे दिन दिल्ली विधानसभा का चुनाव है। यों तो दिल्ली में पहले भी विधानसभा, लोकसभा और निगम के चुनाव हुए हैं। लेकिन यह चुनाव पहले से थोडा सा अलग है। इस बार एक ऐसी पार्टी मैदान में है जो पूरी व्यवस्था को चुनौती देते हुए उसको बदलने की बात करती है। जी हाँ, मैं "आम आदमी पार्टी" की ही बात कर रहा हूँ। इस पार्टी ने प्रचार के तरीके को ही बदल दिया। पहले सिर्फ रैलियाँ ही होती थी लेकिन इस बार इस पार्टी ने पदयात्रा कि शुरुआत कर दी, नतीजा हुआ कि दूसरे दलों को भी यही करना पड़ा।
सुना है कि इनके उम्मीदवारों ने कोर्ट में हलफनामा दिया है कि ये लाल बत्ती वाली गाड़ी का प्रयोग नहीं करेंगे , कोई बंगला नहीं लेंगे, आदि आदि। इन्होने जनहित के लगभग हर मुद्दे को उठाया है। हर समस्या के कारण और उसके निदान का तरीका भी बताया है। कभी हमने सोचा भी नहीं था कि कोई ऐसी बातें भी करेगा। अभी तक तो सिर्फ मुफ्त अनाज , लैपटॉप , साईकिल देने की बात की जाती थी । कोई भी हमें स्वाबलम्बी बनाने की बात नहीं करता था।
पहली बार ऐसी पार्टी आई है जो राजनीती और समाज में शुचिता की सिर्फ बात ही नहीं करती बल्कि व्यवहारिक रूप में उस पर अमल करती है। इन्होने वादे भी बे-सिर पैर के नहीं किये हैं। किसी भी एक वर्ग को खुश करने के लिए बयान नहीं दिए हैं। भ्रष्टाचार को जड़ से उखारने के संकल्प को ये बार बार दुहराते हैं। उम्मीदवार के चयन कि प्रक्रिया भी इनकी बड़ी ही अनोखी रही। इन्होने हर एक आवेदन की अच्छे से जांच की और उनमें से उपयुक्त आवेदकों के नाम सार्वजनिक कर दिए। फिर क्षेत्र की जनता ने जिसको ज्यादा पसंद किया उसको वहाँ का उम्मीदवार बना दिया। किसी के खिलाफ कोई आरोप आये तो उस पर भी कारर्वाई कि।
आज तक किसी भी राजनितिक दल ने अपने उम्मीदवार का टिकट नहीं काटा था। जब भी किसी पार्टी के उम्मीदवार पर कोई आरोप लगते थे , पूरी पार्टी उसको पाक - साफ़ बताने और साबित करने में जुट जाती थी। लेकिन इन्होने तो अपने एक उम्मीदवार का टिकट ही काट दिया और दूसरी उम्मीदवार खुद ही पीछे हट गयी। अभी भी ये कह रहे हैं कि किसी भी उम्मीदवार के खिलाफ अगर कोई मामला चुनाव से एक दिन पहले भी आता है तो ये उसकी उमीदवारी रद्द कर देंगे। ऐसा करना और कहना बहुत बड़ी बात है।
आज हर पार्टी वंशवाद का बड़े ही अच्छे तरीके से पालन कर रही है। लेकिन इस पार्टी ने कहीं भी एक परिवार से एक से ज्यादा लोगों को उम्मीदवार नहीं बनाया। इनके संविधान में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख है। दुसरे दलों की रैली में पैसे देकर भीड़ जुटाने के आरोप लगाये जाते हैं। इनकी रैली में लोग अपने खर्चे पर जाते हैं। इनको मिले चंदे के एक एक पैसे का हिसाब इनकी वेब साईट पर उपलब्ध है ऐसा ये दावा करते हैं। अगर इस पार्टी को जनता का समर्थन मिला तो राजनीती में आमूल चूल परिवर्तन आ जाएगा ऐसा महसूस होता है।
लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि क्या इनको जनता अपना समर्थन देगी ? और अगर इनको जनता का समर्थन मिलता है तो क्या ये अपने वादों को पूरा करेंगे ?
एक बात और है अगर इनको समर्थन नहीं मिला तो , राजनीती में परिवर्तन होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा । फिर कोई केजरीवाल अपनी लगी लगाई नौकरी को लात मारकर जनसेवा के जूनून में पागल होकर सड़कों पर नहीं उतरेगा।
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