23 नवम्बर, 2013
अभी अभी भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में एक कला अध्याय जुड़ गया है। "तहलका" के सर्वेसर्वा श्री तरुण तेजपाल जी पर यौन दुराचार का आरोप लगा है जिसको उन्होंने एक तरह से स्वीकार भी किया है। प्रायश्चित करने की भी अपने तरीके से कोशिश की है। अब ये और बात है कि पीड़िता उनकी स्व-सजा से संतुष्ट नहीं है। पुलिस अपना काम भी कर रही है। भारतीय दंड संहिता की कड़ी से कड़ी धाराएं लगायी गयी हैं।
इन सबके बीच, एक बात ध्यान देने योग्य है कि मीडिया इस मामले को उतने प्रभावी ढंग से नहीं उठा रहा है जितनी उनसे उम्मीद थी। बिलकुल साँप सूँघ सा गया है इनको। आखिर क्यों ? क्या सिर्फ इस लिए कि इस बार उन्हीं की बिरादरी का एक शख्स दुराचार का आरोपी है ? अगर तरुण तेजपाल की जगह कोई नेता, अभिनेता या फिर कोई अन्य क्षेत्र का रसूखदार व्यक्ति होता तो मीडिया ऐसे ही चुप रहती ?
बिलकुल नहीं। अख़बार में खास जगह पर इससे जुड़ी कहानी हर रोज छापी जाती। न्यूज़ चैनेल तो २४ घंटे इस पर अपडेट देते रहते। ये देखिये, ये तरुण तेजपाल का नौकर है, इससे जानने की कोशिश करते हैं तेजपाल के चरित्र के बारे में। ये देखिये, ये तरुण तेजपाल की सोसाइटी का चौकीदार है , इससे जानते हैं कि तेजपाल का व्यक्तित्व कैसा है। आदि, आदि तरह से न्यूज़ चैनेल वाले बाइट लेने और अपनी टी आर पी बढ़ाने में जी - जान से लग जाते।
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं , श्री आसाराम बापू जी भी ऐसे ही आरोप में फँसे थे और अभी भी जेल में ही हैं। उनका मामला आते ही चैनेलों में होड़ सी लग गयी। जाने कहाँ कहाँ से सबूत जुटाए जाने लगे। हर रोज टेली विजन पर इसी की चर्चा। पुलिस और न्यायालय के काम खुद ही करने लगे थे चैनेल वाले। आज इस चेले का बयान , कल उस चेले का। कभी इस भक्त का इंटरव्यू, कभी उसका। और कहीं भी गलती से भी किसी के बयान बापू जी के समर्थन करते हुए दीखते , बस उसकी लानत मलामत शुरू हो जाती थी।
मामला न्यायालय में था और है भी लेकिन सारी की सारी जिरह और गवाही न्यूज़ चैनेलों पर ही होने लगी थी। ऐसा साबित करने हो होड़ मच गयी थी कि आसाराम जी से बड़ा पापी न तो कभी पैदा हुआ और न कभी पैदा होगा। लेकिन जब बात अपने पर आई तो ऐसी चुप्पी, मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। न किसी की गवाही न जिरह। किसी भी चैनेल के प्राइम टाइम में कोई चर्चा नहीं।
ये मीडिया का दोहरा मापदंड नहीं तो और क्या है ?
नोट : हमारे संस्कार में बुजुर्ग चाहे जैसे भी हों , उन पर चाहे कैसे भी आरोप क्यों न लगे हों , छोटों को उनके लिए सम्मानजनक शब्दों का ही प्रयोग करने की परंपरा है। सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग करने का मतलब उनको क्लीन चिट देना या उनका महिमा मंडन करना नहीं है।
बिलकुल नहीं। अख़बार में खास जगह पर इससे जुड़ी कहानी हर रोज छापी जाती। न्यूज़ चैनेल तो २४ घंटे इस पर अपडेट देते रहते। ये देखिये, ये तरुण तेजपाल का नौकर है, इससे जानने की कोशिश करते हैं तेजपाल के चरित्र के बारे में। ये देखिये, ये तरुण तेजपाल की सोसाइटी का चौकीदार है , इससे जानते हैं कि तेजपाल का व्यक्तित्व कैसा है। आदि, आदि तरह से न्यूज़ चैनेल वाले बाइट लेने और अपनी टी आर पी बढ़ाने में जी - जान से लग जाते।
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं , श्री आसाराम बापू जी भी ऐसे ही आरोप में फँसे थे और अभी भी जेल में ही हैं। उनका मामला आते ही चैनेलों में होड़ सी लग गयी। जाने कहाँ कहाँ से सबूत जुटाए जाने लगे। हर रोज टेली विजन पर इसी की चर्चा। पुलिस और न्यायालय के काम खुद ही करने लगे थे चैनेल वाले। आज इस चेले का बयान , कल उस चेले का। कभी इस भक्त का इंटरव्यू, कभी उसका। और कहीं भी गलती से भी किसी के बयान बापू जी के समर्थन करते हुए दीखते , बस उसकी लानत मलामत शुरू हो जाती थी।
मामला न्यायालय में था और है भी लेकिन सारी की सारी जिरह और गवाही न्यूज़ चैनेलों पर ही होने लगी थी। ऐसा साबित करने हो होड़ मच गयी थी कि आसाराम जी से बड़ा पापी न तो कभी पैदा हुआ और न कभी पैदा होगा। लेकिन जब बात अपने पर आई तो ऐसी चुप्पी, मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। न किसी की गवाही न जिरह। किसी भी चैनेल के प्राइम टाइम में कोई चर्चा नहीं।
ये मीडिया का दोहरा मापदंड नहीं तो और क्या है ?
नोट : हमारे संस्कार में बुजुर्ग चाहे जैसे भी हों , उन पर चाहे कैसे भी आरोप क्यों न लगे हों , छोटों को उनके लिए सम्मानजनक शब्दों का ही प्रयोग करने की परंपरा है। सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग करने का मतलब उनको क्लीन चिट देना या उनका महिमा मंडन करना नहीं है।
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