1 नवम्बर, 2013
त्यौहार के दिनों में तो इनकी सक्रियता ज्यादा ही बढ़ जाती है। आप सोचोगे कि हम सुबह सबेरे ही जाकर काउन्टर पर सबसे पहले पहुँच जाते हैं तो हमें कन्फर्म टिकट मिल जाएगा। लेकिन आप लाइन में खड़े रहते हैं और आपको धक्का देकर कोई आगे बढ़ जाता है, और टिकेट ले लेता है। आप देखते रह जाते हैं। आप कुछ बोलोगे तो मरने मारने पर उतर आते हैं ये लोग। पूरा का पूरा गिरोह होता है ८ - १० लोगों का, हर रिजर्वेशन केंद्र पर।
ये लोग बुकिंग क्लर्क से सांठ गाँठ के बगैर एक दिन भी काम नहीं कर सकते। जाहिर सी बात है, इनकी कमाई का बड़ा हिस्सा बुकिंग क्लर्क कि जेब में भी जाता होगा। आखिर प्रशासन क्यों नहीं लगाम लगता इन पर ? क्यों इन पर कारवाई नहीं कि जाती ? जब ज्यादा विरोध होता है तो एक दो जगह पर छापा मारकर खाना पूर्ती कर दी जाती है।
इतना तो तय है कि रेलगाड़ियों में सीटें कम हैं और यात्री ज्यादा। तभी इस तरह कि आपाधापी होती है और दलालों को भी मौका मिल जाता है मजबूर यात्रियों के आर्थिक दोहन का। हर साल त्यौहारों और छुट्टियों के दिनों में रेलवे और सरकार दवा करती रहती है कि इस बार तैयारी पूरी है। दलालों पर पूरी तरह से लगाम लगाया जाएगा। ट्रेनों कि संख्या और फेरी बड़ा दी गयी है। अतिरिक्त कोच जोड़े जा रहे हैं। अतिरिक्त गाड़ियां चलाई जा रही है।
लेकिन नतीजा क्या निकलता है इसका ? स्टेशनों पर भेड़ बकरियों की तरह यात्रियों कि भीड़ रहती है और लोग जैसे तैसे जान की बाजी लगाकर यात्रा करते हैं। कहीं भगदड़ हो जाती है तो मुआवजे बांटकर , कुछ लोगो को मुअत्तल करके सरकार की जवाबदेही पूरी हो जाती है। आखिर कब मिलेगी हमें भ्रस्टाचार मुक्त आरामदायक यात्रा।
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