1 नवम्बर, 2013
बाबाजी ने सपना देखा कि सोने का भंडार है, और सरकार ने खुदाई शुरू करवा दी। भारत के इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ। जब आलोचना शुरू हुई तो कहा गया कि भारतीय पुरातत्व विभाग खुदाई करवा रहा है। थोड़े दिनों तक इसी भ्रम में रहे, फिर पुरातत्व विभाग ने कहा कि खुदाई का आदेश सरकार कि तरफ से आया था। पहली बार हो रहा है कि इतने बड़े खजाने की प्राप्ति का श्रेय लेने को कोई भी तैयार नहीं है।
बाबा जी के भी अपने तर्क हैं, और वो इस पर पूरी तरह से कायम हैं। बयान भी नहीं बदले हैं उन्होंने और न ही अगर मगर की गुंजाइश छोड़ी है। परन्तु यह बात अभी भी साफ़ नहीं है कि खुदाई बाबाजी के के सपने को सच मान कर कराई जा रही है या पुरातत्व विभाग का स्वयं का निर्णय है या फिर सरकार का निर्णय है। सच्चाई तो यह है कि सरकार इसकी जिम्मेदारी से पल्ला भी झाड़ना चाहती है और अगर खजाना मिल जाता है तो इसका श्रेय लेने में भी पीछे नहीं रहना चाहती है।
सच्चाई कुछ भी हो लेकिन खुदाई के समय को लेकर मेरे मन में शंका है। खुदाई का समय वही चुना गया जब मोदी कि रैली कानपुर में होने वाली थी। खुदाई रैली से बहुत पहले भी हो सकती थी या फिर थोड़े दिनों बाद भी हो सकती थी। लेकिन उसी समय क्यों? जाहिर सी बात है, उन्नाव कानपुर से ज्यादा दूरी पर नहीं है। वहाँ रैली से थोड़े दिनों पहले मेला जैसा माहौल बना दिया गया। आनन् फानन में खुदाई शुरू करवा दी गयी। ताकि भीड़ उन्नाव कि तरफ बढे और रैली कि हवा निकल जाए। लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था। रैली में उम्मीद से भी ज्यादा लोग पहुँचे और योजना धरी रह गयी।
अब खुदाई को रोकने के बहाने तलाश किए जा रहे हैं।
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