19 सितम्बर, 2013
हमारी दिल्ली के अख़बार में आजकल हर रोज एक न एक बलात्कार की खबर जरूर ही आने लगी है। पहले तो इक्का दुक्का घटनाएं ही होती थी लेकिन अब तो हालात ज्यादा ही ख़राब है। ऐसा लगता है कि दिल्ली में महिलाओं का घर से निकलना खतरों से खाली नहीं है। कब कहाँ किसका बलात्कार कर दे दूषित मानसिकता के लोग, कुछ नहीं कहा जा सकता है। पहले कहते थे कि देर रात को महिलाएं अकेले बाहर न निकलें। लेकिन अब क्या करें, अब तो दिन दहाड़े, घर के आस पास, किसी साथी की मौजूदगी में ही बलात्कार होने लगे हैं।
इतनी घटनाओं को देख सुनकर, मन सोचने को मजबूर हो जाता है, कि क्या वाकई में बलात्कार यौन इच्छा की पूर्ति के लिए ही किया जाता है ? आज कल 6 माह, 2 साल, 4 साल की बच्ची से भी बलात्कार किये जाने की खबर आने लगी है। क्या इतनी छोटी उम्र की बच्ची से बलात्कारी को यौन सुख की प्राप्ति हो सकती है ? सोच कर ही मन सिहर उठता है। और बड़ी उम्र की युवती या महिला के साथ भी उनको क्या आनंद की अनूभूति होती है , यह मेरी समझ से परे है।
लड़की, बेबस लाचार होकर भी विरोध कर रही है , पूरा जोर लगा रही है जालिमों के चुंगल से छुटने की, और बलात्कारी अपनी जोर आजमाइश कर रहा है। अंततः निर्दयता और बहशीपन के आगे मासूमियत हार जाती है। इस तरह के लोग मानसिक बीमारी के शिकार होंगे जिसमें लोगों को तडपाने, उनको दर्द देने में सुख मिलता होगा। या फिर यह किसी तरह की लत की तरह है जिसमें इन्सान कमीनेपन की उस हद तक पहुँच जाता है जहाँ उसको न कानून का डर होता है, न ज़माने में बदनामी का। अभी अभी 4 आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई गई है लेकिन इसके बाद भी नीच प्रवृति के लोग सुधरने का नाम नहीं ले रहे। ये डर ही नहीं है कि हम ऐसा करेंगे तो हमें भी फांसी की सजा हो सकती है। बल्कि एक मामले में तो नाबालिग आरोपी थाने में ही पुलिसवालों को धमका रहा था की क्या करोगे, ज्यादा से ज्यादा २ साल सुधार गृह में रखोगे।
ये कहना बिलकुल गलत है कि लड़कियों के पहनावे से बलात्कार की घटना बढ़ी है। नीच लोगों को पहनावे से कोई फर्क नहीं पड़ता। अब 2, 4, 6 साल की लड़की क्या उत्तेजक कपडे पहनेगी ? लेकिन उनके साथ भी बलात्कार होता है। सबसे आश्चर्यजनक बात तब लगती है कि ज्योंहि कोई ऐसे घृणित कार्य के आरोप में गिरफ्तार होता है , बेशक सारे सबूत उसके खिलाफ हो, उसके घर के लोग उसको बचाने में लग जाते हैं। और तो और अगर लड़का कम उम्र का हो तो उसको नाबालिग साबित करने में जी जान लगा देते हैं। कोई भी यह नहीं कहता कि अगर मेरा बेटा गुनाहगार है तो उसको कड़ी सजा दो। सबको अपनी औलाद की पड़ी है, दुसरे की औलाद को इसने किस तरह की मानसिक और शारीरिक यातना दी है, यह कोई नहीं सोचता।
आखिर किस दिशा में जा रहा है हमारा समाज ?
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