शिव विहार वाली मेट्रो में हूँ, घोषणा हो रही है कि गाड़ी की गति की दिशा में पहला डिब्बा महिलाओं के लिए आरक्षित है। उससे पहले रिठाला वाली मेट्रो में था, उसमे आते हुए पहला और जाते हुए आखिरी डिब्बा महिलाओं के लिए रिजर्व्ड है। अब महिलाओं को कन्फ्यूजन होगी कि किस लाइन पर कौन सा डिब्बा रिजर्व्ड है।
एक बार मैं रिठाला से आते हुए पहले डिब्बा में बैठ गया, तो एक आंटी को बहुत बुरा लगा। बोली दूसरे डिब्बे में जाओ। फिर 2-4 लोग और आ गए। उनको भी यही कहा कि ये महिलाओं के लिए आरक्षित डिब्बा है, सब दूसरे डिब्बे में जाओ। मानने को तैयार ही नहीं थी कि आते हुए पहला और जाते हुए दूसरा डिब्बा रिजर्व्ड है उनके लिए।
ऐसा कंफ्यूजन बनाया पुरानी कांग्रेसी सरकार ने। पहले तो लेडीज के लिए पहली कोच आरक्षित कर दी तो महिलाएं बहुत खुश हुई। अब महिलाओं को ज्यादा खुश करने के लिए, हर प्लेटफार्म पर गुलाबी रंग से इंडिकेशन मार्क लगवा दिया, ताकि महिलाओं को पहला डिब्बा ढूंढने में दिक्कत न हो। लेकिन गलती ये कर दी कि दोनों गुलाबी मार्क आमने सामने लगवा दिए। पैसा खूब खर्च किया ये सोचकर कि महिलाएं फिर से दिल्ली और केंद्र में सरकार बनवा देगी। लेकिन महिलाओं को अब दिक्कत होने लगी । पिंक इंडिकेशन पर खडे रहते तो जाती हुई ट्रेन का आखिरी डिब्बा इनके सामने होता अब फिर उनको चलकर पहले डिब्बे तक जाना पड़ता था। महिलाओं को दिक्कत होने लगी। कांग्रेस को लगा कि अब तो लेने के देने पड़ जायेंगे। महिलाओ के वोट के लिए लुभावन फैसला किया, पैसे भी लगवा दिए रंगाई पुताई में, और महिलाओ की दिक्कत कम होने के बदले बढ़ ही गई, ज्यादा खुश करने के चक्कर में ज्यादा नाराज कर दिया महिलाओ को।
अब क्या करते, कैप्री बनाने के चक्कर में पैंट को काटा, लेकिन अब पैंट कैप्री के बदले निक्कर बन गया। तो निक्कर के फायदे गिनाने लगे और आती हुई ट्रेन में घोषणा करवा दी की पहली कोच महिलाओं के लिए आरक्षित है, और जाती हुई ट्रेन में आखिरी डिब्बा महिलाओ के लिए आरक्षित है। वॉइस रेकॉर्डिंग आर्टिस्ट को भी पैसे देने ही पड़े होंगे। लेकिन फिर भी महिलाओ के वोट ने मिले कांग्रेस को और 2013 में दिल्ली की सत्ता गई और 2014 में केंद्र की सत्ता से बेदखल हो गए। क्या दिक्कत हो जाती अगर रंग रोगन न करवाते कांग्रेस वाले ? पैसा भी खर्च नहीं होता बेवजह, महिलाये भी किसी भी ट्रेन के पहले कोच को अपने लिए आरक्षित समझती।